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इस टीका के अनुवादक डॉ. हर्षनाथ जी मिश्र ने भी मेरे इस कार्य में यथावसर सहयोग दिया है। अतः मैं उनके प्रति अपना का माभार व्यक्त करता हूँ।
.. एक बार पुनः श्रद्धेय मुनिराज श्री यशोविजयजी महाराज एवं "यशोभारती जैन प्रकाशन समिति" के अधिकारियों के सौजन्य तथा सौहार्द की सराहना करते हुए मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ और इस ग्रन्थ के सर्वत्र सुसमादर की कामना करता है। प्रलं पल्लवितेन ।
भा० शु० ऋषिपञ्चमी २०३३ वि० वई दिल्ली २१
विद्वद्वशंवदडॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी