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[ ४० ] पञ्चिका- बृहस्पति रायमुकुट मरिण
प्रस्तुत टीका का स्वयं टीकाकार ने स्वरचित 'मेघदूत' की टीका में उल्लेख किया है, ऐसा हरप्रसाद शास्त्री ने अपनी रिपोर्ट २२५ पर सूचन किया है । देखो IHO १७ १०४५८
इस सम्बन्ध में 'डेट आफ वर्क्स प्राफ रायमुकुट' में दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य ने विचार किया है--
द्रष्टव्य IHO १७, १९४१, पृ० ४७० [ ४१ ] मङ्गलमयूखमालिका-वरदार्य
इनके पिता का नाम देवराज था । T. A. १८६२ (B) (inc) इसका उल्लेख "कैटलागस कैटलागरम्" में हुमा है।
[४२ ] मधुररसा-कृष्ण द्विवेदी
प्रौफेक्ट के i, १०१ बी० में इसका उल्लेख है। के० के० पं० काशीनाथ कुन्टे की लाहोर की रिपोर्ट में पृ० २० पर इसका सूचन होना बताया है। [ ४३ ] रसप्रकाश-कृष्ण शर्मा
रॉयल एशियाटिक सोसायटी-बंगाल की पाण्डुलिपियों के परिचय में (५ भाग, सं० ४८४२-६५८१-पृ० ४१६/२० पर केवल २० पृष्ठों तक १-२ अध्याय का सूचन किया है। तथा HSP संख्या ५८ में केवल पांचवें उल्लास तक की उद्धरण दिया है । 'केटलागस कैटलागरम्' में विश्वभारती की हस्तग्रन्थ सूची में २४८६ (उ० २) होने का भी सूचन है। [ ४४ ] रहस्य-विकास
के० के० में इसका सूचन हुआ है तथा नवद्वीप (बंगाल) की हस्तग्रन्थ सूची पृ० ६७३ में इसका निर्देश है ऐसा बताया है। [ ४५ ] विशिनो
के० के० में इसका सूचन किया गया है तथा त्रिपुणीतुरा की हस्तग्रन्थ सूची के विभाग २ में पृ० २५८ पर इसका उल्लेख है। [ ४६ ] विवरण
__ के० के० में इसका सूचन है तथा यह उल्लेख मिथिला की ग्रन्थसूची के २ भाग में पृ० १७ में होना बतलाया है।
[७] वृत्ति
कुछ प्राचार्यों ने काव्यप्रकाश की कारिकाओं को भरतमुनि प्रणीत मान कर उन्हें 'लघुकाव्यप्रकाश' के नाम से व्यक्त करते हुए उन पर टीकाएँ लिखी हैं । जिनमें से यह एक वृत्ति भी है।
यहाँ प्रारम्भ में 'हेरम्ब शारदा देवीं "व्याख्यास्ये मूलकारिकाः" लिखा है। भा० प्रो० इ० पूना की सूची में इसका उल्लेख मिलता है।