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इसका प्रथम प्रकाशन 'पण्डित-पत्रिका' के १८-१६ के अंकों में ई० सन् १८६६.६६ में हुआ था। तदनन्तर वाराणसी में सन् १८६६ तथा १६१८ में इसका पुनमुद्रण हुअा। बम्बई में भी इसके १, २ और १० उल्लासों का सन् १९१३ में प्रकाशन हुआ था। इसी प्रकार और भी संस्करण इसके प्रकाशित होते रहे हैं।
इसके पश्चात् भारतीय विश्वविद्यालयों में जैसे-जैसे इस ग्रन्थ के अध्ययन को स्थान मिला, उसी के अनुसार छात्रों की सुविधा को लक्ष्य में रखकर केवल पाठ्यक्रम में निर्धारित प्रशों के ही अनुवाद तथा टिप्पण लिखे गए, जो कि पूरे ग्रन्थ पर न होकर कतिपय अशों के ही अनुवाद थे। अत: डा० झा का ही यह अनुवाद सम्पूर्ण तथा सर्वोपरि है। [ २ ] अनुवाद, टिप्पणी तथा भूमिका- डॉ. एच० डी० वेलनकर ।
यह काव्यप्रकाश के प्रथम और द्वितीय उल्लास पर लिखित अनुवाद है। इसी के साथ लेखक ने अपनी प्रावश्यक टिप्पणी भी अंग्रेजी में दी है। भूमिका में काव्यप्रकाश की महत्ता एवं विवेच्य विषयों का विमर्श भी प्रस्तुत किया है । इसका प्रकाशन बम्बई से हुआ है। 1 ३ ] अनुवाद, टिप्पणी तथा भूमिका- श्री पो० पी० जोशी
श्री जोशीजी ने इसमें प्रथम और द्वितीय उल्लास के अतिरिक्त दशम उल्लास भी अनूदित किया है । साथ ही टिप्पणी (नोट्स) भी दी है। इसका भूमिका भाग भी मननीय है। [४] अनुवाद एवं भूमिका-प्रो. चांदोरकर
इसमें गोविन्द ठक्कुर के 'काव्यप्रदीप' तथा नागोजी भट्ट के 'उद्द्योत' के साथ क्रमश: प्रथम, द्वितीय, सप्तम और दशम इन चार उल्लासों का अनुवाद एवं भूमिका दी है । [५] अनुवाद एवं भूमिका- श्री एस० वि० दीक्षित
अंग्रेजी में विस्तृत भूमिका-पूर्वक इसमें क्रमशः 'प्रथम, तृतीय तथा दशम' उल्लास का अनुवाद है। [६] अनुवाद एवं विस्तृत भूमिका-श्री प्र० बा० गजेन्द्रगड़कर
श्री अच्युताचार्य बालाचार्य गजेन्द्रगड़करजी ने अपनी विस्तृत भूमिका के साथ इस अनुवाद में 'प्रथम, तृतीय तथा दशम' इन तीन उल्लासों का समावेश किया है। यह अनुवाद प्रतिप्रिय रहा है। अतः इसके संस्करण क्रमशः परिवद्धित भी हुए। डॉ० एस० एन० गजेन्द्रगड़कर ने भी इसमें संवर्द्धन किया है। [७] अनुवाद- डॉ० एच० डी० शर्मा
इसमें प्रथम, ततीय तथा दशम इन तीनों उल्लासों का अंग्रेजी अनुवाद सम्पादित है। [८ ] पोइटिक लाइट-'सम्प्रदाय-प्रकाशिनी' सहित, अनुवाद-डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी
उदयपुर के विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. द्विवेदी ने विद्याचक्रवर्ती की 'सम्प्रदाय-प्रकाशिनी' संस्कृत टीका के साथ अपना अग्रेजी अनुवाद इसमें दिया है। परिशिष्ट में रुय्यक की टीका भी संकलित है। इसका प्रकाशन दो भागों में दिल्ली से हुआ है।
[ 8 ] 'रस-प्रकाश' सहित व्याख्या तथा भूमिका-- डा० एस० एन० शास्त्री
श्रीकृष्ण शर्मा की 'रसप्रकाश' टीका के साथ इसमें प्रथम से पञ्चम उल्लास तक डॉ० शास्त्री ने अपनी अंग्रेजी व्याख्या प्रकाशित की है जो कि प्रथम भाग के रूप में सन् १९७. में प्रकाशित हुई है। साथ ही भूमिका भी है।