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[ ४० ] काव्य-प्रकाशतिलक- जयरामी अथवा रहस्यदीपिका जयराम न्यायपञ्चानन भट्टाचार्य
(सन् ५०० से १७०० ई० के बीच )
इस टीका का उल्लेख श्रीवत्सलाञ्छन तथा भीमसेन ने किया है। पीटर्सन की रिपोर्ट में इसका कुछ अंश पृ० १०८.१०६ में प्रकाशित हुआ है। इसी टीका को 'जयरामी' और 'रहस्यदीपिका' भी कहा जाता है। ये 'न्यायसिद्धान्तमाला', 'न्यायकुसुमाञ्जलि' तथा 'तत्त्व-चिन्तामणि दीधिति' नामक ग्रन्थों के टीकाकार से अभिन्न हैं। इन्हीं ग्रन्थों से प्रतीत होता है कि ये नैयायिक थे। ये रामचन्द्र (अथवा रामभद्र) भद्राचार्य सार्वभौम के शिष्य तथा जनार्दन व्यास के . गुरु कहे जाते हैं । विश्वेश्वर ही ऐसे लेखक हैं जिन्होंने (न्याय पञ्चानन की उपाधि के साथ, अपने 'अलङ्कार-कौस्तुभ, में प्राय: ६ बार इनके विस्तृत उद्धरण दिए हैं। इन्हें कृष्णनगर (बंगाल) के राजा रामकृष्ण का संरक्षण प्राप्त था । इनका समय सन १६६४ ई० माना है। पीटर्सन की रिपोर्ट भाग २ पृ० १०७ तथा राजेन्द्रलाल मित्रा के नोटस पृ० १४४७ में भी इस टीका के उद्धरण दिये गए हैं। [४१ ] (काव्यालङ्कार)-रहस्य-निबन्ध - भास्कर ( १७वीं शती ई० से कुछ पूर्व )
ये भास्कर पूर्वोक्त भास्कर से भिन्न हैं । 'नरसिंहमनीषा' में लाटभास्कर मिश्र के नाम से इनका उल्लेख हुआ है। प्रतः ईसा की सत्रहवीं शती से पूर्व इनका स्थिति काल माना जाता है।
[ ४२ ] सारदीपिका- गुणरत्न गणि ( सन् १६१० (?) ई० )
ये 'खरतर' गच्छ के जिनमाणिक्य सूरि के प्रशिष्य तथा विनयसमुद्र गणि के शिष्य थे । इन्होंने यह टीका अपने शिष्य रत्नविशाल के अध्ययनार्थ प्राय: १० हजार श्लोक प्रमाण में बनाई थी। 'भाण्डारकर प्रोरियण्टल इंस्टीट्यूट, . पूना' की हस्तलेख सूची खण्ड १२, पृष्ठ ११२ पर इसका निर्देश है । इसकी हस्तलिखित प्रति सं० १७४२ में लिखित है। [ ४३ ] कमलाकरी- कमलाकर भट्ट ( सन् १६१२ ई० )
धर्मशास्त्र के क्षेत्र में कमलाकर भट्ट का नाम बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने स्मृति एवं मीमांसा पर कई ग्रन्थलिखे हैं । इनका निवास वाराणसी में था।' कहा जाता है कि इनके वंशज अब भी वाराणसी में विद्यमान हैं। ये राम कृष्ण भट्ट तथा उमादेवी के पुत्र थे। परिवार की दृष्टि से इनके प्रपिता का नाम रामेश्वर भट, पितामह का नाम नारायण भट्ट और बड़े भाई का नाम दिनकर भट्ट था । आश्वलायन शाखीय तथा विश्वामित्र गोत्रीय महाराष्ट्र ब्राह्मण कूल में इनके पूर्वज सभी विद्याव्यसनी एवं शास्त्रमर्मज्ञ हए हैं। फलतः ये भी श्रोत, स्मार्त, कर्मकाण्ड, धर्मशास्त्र, मीमांसा एवं वेदान्त दर्शन के अच्छे पण्डित थे ।२
प्रस्तुत काव्यप्रकाश की टीका के निर्माण का हेतु इनका पुत्र अनन्त भट्ट रहा है। वैसे इन्होंने टीका में लिखा है कि
१. वाराणसी के भट्ट परिवार में कमलाकर के स्थान के लिये बी० एन० माण्डलिक के 'व्यवहार-मयूख' पृ० १२६
में तथा भण्डारकर रिपोर्ट (१८८३-८४ पृ० ५०-१) में भी देखिये । २. इन्होंने चार अध्याय पर्यन्त 'रामकौतुक' ग्रन्थ की भी रचना की थी, जो कि राजा राजसिंह के मन्त्री, गरीबदास
के अनुरोध पर हुई थी, ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है।