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साहित्य-रचना की दृष्टि से इनके लगभग तीस ३० ग्रन्थों का नामोल्लेख इन्हीं के 'अमृतोदय' नाटक की भूमिका, 'पदवाक्य रत्नाकर' के प्रामुख, 'मिथिलातत्त्वविमर्श', 'तीरभूषित का इतिहास' तथा 'मिथिलानध्यन्यायेतिहाप्स' से प्राप्त होता है ।
इनके जीवन में इनकी पुत्री कादम्बरी' का प्रकाल में ही गङ्गा के जल में डूब जाने से इनको गहरा प्राघात हुआ था। जिसके परिणामस्वरूप इन्होंने लिखा है कि
प्रावां वाव प्रकृतिकृपणो दूरमुद्यम्य बाहू, विक्रोशावः करुणवचनं पुत्रि ! कादम्बरीति । कोऽसौ लोकक इव विषयः कि पूरं को निवासी, यस्मिन्नस्मद्विमुखहृदया त्वं निलीय स्थितासि ॥ वत्से कादम्बरि तव परं लोकमासादयन्त्या, गङ्गा गङ्गाधर इति पितृद्वन्द्वमासीत् सहायः । हेतोः कस्मादपि हि पितरौ द्वरतस्त्यक्तवत्या, दीर्घः पन्थाः कथमितरथा लङ्गितोऽभूद भवत्या ।। स्पृष्ट्वा स्पृष्ट्वा प्रथममभवत् कोतिता चिन्तिता वा, हेतुपुत्रश्रवरगनयनस्वान्तसन्तापशान्तेः । सैवेदानों स्मृतिमुपगता शिष्यमाणेन नाम्ना, निर्दिष्टा वा दहति दुहिता हन्त ! कादम्बरी माम् ॥
प्रस्तुत 'काव्यप्रकाश-विवरण' में अमृतोदय, शिवशतक, रसमहार्णव, मदालसा नाटक तथा पदवाक्यरत्नाकर का उल्लेख हा.है। विवेचन की दृष्टि से ग्रन्थत्व के निर्वचन, काव्यलक्षण, वाच्यादि अर्थों के निरूपण, वाचक शब्द के लक्षण, लक्षणा और व्यञ्जना के विवेचन, संयोगो विप्रयोगश्च इत्यादि कारिका के विवरण, 'तथाभूताम्' इत्यादि में अर्थव्यजनोत्थ काकुध्वनि के स्थापन, वाच्य और व्यङ्ग्य के समान व्यङग्यों के भी पौर्वापर्य-प्रदर्शन, साङ्ग रसादि असंलक्ष्यक्रम व्यङ्ग्य के निरूपण, ध्वनिसङ्कर के उदाहरण तथा गुणीभूतव्यङ्ग्यनिरूपण में इनके द्वारा की गई वस्तूविवेचना तथा दार्शनिक पालोचनापद्धति से विवरण को सर्वातिशायी माना गया है।
१. इन ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं
१. रश्मिचक (न्यायतत्त्वचिन्तामणि-विवरण), २. मालोकविवरण (पक्षधरीय न्यायचिन्तामणि का आलोक व्याख्यान) ३. दीधिति विद्योत (रघूनाथीय चिन्तामणि दीधिति टीका) ४. न्यायसिद्धान्ततत्त्व ५. दिक्काल-निरूप ६. लाघव-गौरव-रहस्य, ७. कुसुमाञ्जलि विवरण, ८ बौद्धाधिकार-विवरण, ६. शक्तिवाद, १०. मक्तिवाट ११. पद-वाक्यरत्नाकर, १२. खण्डनकुठार, १३. मिथ्यात्वनिरुक्ति (अद्वैतमत-स्थापना) १४. कुण्टकादम्बरी, १५ कादम्बरीप्रदीप (द्वैतनिर्णय टीका) १६. कादम्बरी कीर्तिश्लोक, १७. कादम्बरी-प्रश्नोत्तरमाला, १८. काव्यप्रकाशविवरण, १६. रसमहार्णव (रस निबन्ध) २०. शिवस्तुति (शिवशतक) २१. प्रशोचनिर्णय (स्मृतिनिबन्ध) २२ वत्ततरङ्गिणी, २३. एकावली २४. शुद्धिविवेक, २५. मासमीमांसा, २६. सूक्तिमुक्तावली, २७. मदालसा नाटक, २८. अमृतोदय नाटक. २६. प्राधाराधेयभावतत्त्वपरीक्षा तथा ३०. विशिष्ट वैशिष्टयबोध । इनमें कुछ ग्रन्थ छप
चुके हैं और शेष छपने की प्रतीक्षा में हैं। २. टीका में प्रत्येक उल्लास के प्रारम्भ और अन्त में क्रमशः दिये गये इनके ये पद्य परिशीलनीय हैं
नत्वा परमात्मानं श्रीगोकुलनाथशर्मरणा रचिता। काव्यप्रकाशकाशय-टीका प्रीत्यै सतामस्तु ॥१॥ प्रतीव जर्जरः पोतस्तरणीयो महार्णवः । केवलं परिहासाय स ममायमुपक्रमः ॥ २॥