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तथा अन्य, अशौचनिर्णय, सापिण्डय प्रदीप आदि धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ, योगशास्त्र पर 'योगवृत्ति', बाल्मीकिरामायणटीका', अध्यात्म-रामायण टीका और दुर्गासप्तशती की टीका के अतिरिक्त काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों पर (१) काव्यप्रकाश की टीका'काव्य प्रदीप' पर 'बृहद् उद्द्योत' तथा (२) 'लघु उद्द्योत' (३) काव्यप्रकाश पर 'उदाहरण-दीपिका' अथवा 'प्रदीप (४) रसगडाधर पर 'गुरुमर्मप्रकाशिका' (५) कुवलयानन्द पर 'अलङ्कार-सुधा' तथा (६) विषमपद व्याख्या षट्पदानन्द, (७) रसमञ्जरी पर 'प्रकाश' एवं (८) रसतरङ्गिणी पर एक टीका लिखी है।
'काव्यप्रदीप' पर लिखी यह टीका प्रदीपकार के प्राशय को प्रकट करने में बहुत सफल सिद्ध हुई है। इसमें उदाहरण के रूप में उपस्थापित पद्यों की व्याख्या करते समय वैद्यनाथ की 'उदाहरणचन्द्रिका' को ही अविकल, विकल अथवा परिष्कृत रूप में प्रस्तुत किया गया है तथापि वैद्यनाथ की 'प्रभा' का व्याख्यान जहाँ इन्हें ठीक नहीं प्रतीत हा है वहाँ तथा जहां उन्होंने कोई व्याख्यान नहीं किया है, ऐसे स्थलों पर अपने मतानुसार अभिनव व्याख्या की है।
इसका प्रकाशन-'उद्द्योत' और 'प्रदीप' सहित, आनन्दाश्रम सीरिज में १९११ ई० में तथा सं० पाठ प्रदीपसहित अध्याय १, २, ७ और १० उल्लास अपनी अंग्रेजी भूमिका सहित प्रो० चान्दोरकर द्वारा पूना से किया गया है।
[ ५६ ] लघु उद्योत-नागेश भट्ट ( १७वीं शती ई० का उत्तरार्ध)
___ नागोजी भट्ट की ही यह प्रटीका 'बृहद् उद्द्योत' में वर्णित किसी विषय को कुछ संक्षिप्त करके अथवा कहीं भिन्न आनुपूर्वी से तात्पर्य को व्यक्त करते हुए शब्दभेद से लिखी गई है। टीकाकार ने जिस प्रकार व्याकरण ग्रन्थों में बृहद् और लघु नाम से एक ग्रन्थ को दो रूपों में लिखा है, उसी प्रक्रिया का यहां भी अनुकरण हुआ है। [ ६० ] उदाहरण-दीपिका अथवा 'प्रदीप- नागेश भट्ट ई० ( १७वीं शती ई० का उत्तरार्ध)
नागेश भट्ट की यह तीसरी काव्यप्रकाश पर लिखी हुई स्वतन्त्र टीका है । इसका उल्लेख तथा उद्धरण स्टीन ने अपनी रिपोर्ट में पृ० २७, २६८ पर तथा प्रोफेक्ट ने भाग २ पृ० १९वी. पर किया है।
[६१ ] विषमपदी-शिवराम त्रिपाठी ( १८वों शती ई० का प्रारम्भ )
इनके पिता का नाम कृष्णराम, पितामह का नाम त्रिलोक चन्द्र तथा भाइयों के नाम गोविन्दराम, मकुन्दराम और केशवराम थे। शिवराम त्रिपाठी के ग्रन्थों और टीकाओं की संख्या ३४ है। स्टीन ने अपनी रिपोर्ट में पृ० २९२ पर सचित किया है कि इनके 'रावणपुरवध' नामक ग्रन्य के अन्त में लेखक ने अपनी रचनामों का उल्लेख किया है। इनके ग्रन्थों में 'रसरत्नहार' तथा उसकी 'लक्ष्मी-विहार' नामक टीका सं० काव्यमाला गुच्छक (१८७०) पृ० ११८-१४० पर छपी है। 'अलङ्कार-समुद्गक, वासवदत्ता की टीका, छन्दःशास्त्रविषयक-काव्य-लक्ष्मी-प्रकाश' अथवा विहार' तथा सिद्धान्तकौमुदी पर 'विद्याविलास' नामक टीका आदि हैं । ये अपेक्षाकृत अर्वाचीन लेखक हैं, क्योंकि इन्होंने 'परिभाषेन्द शेखर' के उद्धरण दिये हैं। अतः इनका समय १८वीं शती का प्रारम्भ माना गया है। फिटज एडवर्ड हॉल, बिग्लियोथिका इण्डिका संस्करण १८५६ में इन्हें वासवदत्ता का टीकाकार तथा प्रस्तुत 'विषमपदी' आदि के लेखक शिवराम से अभिन्न माना है।
'जर्नल ऑफ दि अमेरिकन पोरियण्टल सोसायटी २४, ५७-६३' में इनके सम्बन्ध में विशेष जानकारी दी गई है। अन्य ग्रन्थों का विवरण प्रौफेक्ट । ६५२ बी० तथा स्टीन का जम्मू कैटलॉग पृ० २६२ पर द्रष्टव्य है। कलहान ने 'विषमपदी' के बारे में सेन्ट्रल प्राबिन्स कैटलॉग' में पृ० १०७ पर उल्लेख किया है। टीका के नाम के आधार पर यह