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[ ६ ] उत्तेजिनी, काव्यप्रकाशोत्तेजनी अथवा सर्वटीका-विभञ्जनी- वेदान्ताचार्य
काञ्चीके श्रीनिवासाध्वरी के द्वितीय पुत्र, भारद्वाज गोत्रीय थे। ये कोचीन के महाराजा रविवर्मा तथा उनके भतीजे कोल वर्मा के आश्रित थे। इन्होंने १०वें उल्लास के उदाहरण रविवर्मा की प्रशस्ति में दिए हैं। इसका उल्लेख 'कन्ट्रीब्यूशन प्रॉफ केरल टु संस्कृत लिटरेचर' पृ० १६३-४ में दिया है। इसी लिए दसवें उल्लास का अपरनाम 'रविराजयशोभूषण' भी है।
प्रस्तुत टीका का उल्लेख डी० सी० एस० एम० एस० एस० ग्रन्थ सं० २२ पर भी हमा है। इसके लेखक ने अपना परिचय ग्रन्थ के अन्त में इस प्रकार दिया है
"इति श्रीमदभारद्वाजकुलजलधि-तपोनिधि-गुरुशरग्रामाधिराज-कृत-गङ्गास्नानाग्निष्टोमादि-नित्यान्नदान-सरस्वती-सहोदरश्रीनिवासाध्वयंवरतन
- सहज-सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र-षड भाषाकविशेखर-तर्कविद्यामिनवगौतम-श्रीवेदान्ताचार्य विरचितायां सवंटीकाविभजन्यां काव्यप्रकाशोत्तेजन्यां दशम उल्लासः ।
इसके अनुसार ये भारद्वाज कुल में उत्पन्न, 'गुरुशर' गाँव के निवासी, श्रीनिवासाध्वरी के द्वितीय पुत्र तथा सर्वज्ञ श्रीनसिंहदेशिक के भाई वेदान्ताचार्य के नाम से प्रख्यात थे। ये अनेक भाषाओं में काव्य-रचना करते थे और न्यायादि अन्यशास्त्रों के भी मर्मज्ञ थे। प्रस्तुत टीका के प्रति अनुराग न रखनेवालों पर व्यङ्गय करते हुए इन्होंने लिखा है कि
ये केचिवत्र रसशालिषु सत्कवीनां, सूक्तेषु कर्णपथगामिषु नाद्रियन्ते ।
ते मालतीपरिमलेष्वपि कन्दलत्सु नासापुटं करतलेन पिदध्युरेवम् ॥ लेखक ने 'प्राशीमल्ल' के दीर्घजीवन की कामना करते हुए भी एक पद्य 'श्रीरामक्षितिपानुज' इत्यादि दिया है।
इसकी पाण्डुलिपि का निर्देश जो कि दशम उल्लास मात्र है, 'ए टिन्नल कैटलाग आफ मैन्स्क्रिप्टस' गवर्नमेंट मोरियण्टल मैन्स्क्रिप्ट्स लायब्रेरी मद्रास के तृतीय भाग के १. संस्कृत सी० अंश पृ० ३८७८ पर ग्रन्थसंख्या २७१६ में दिया है। [७] उदाहरण-दर्पण- डॉ० पी० वी० काणे द्वारा उल्लिखित यह टीका केवल उदाहरणों पर है। [८] उदाहरण-विवरण टोका- (ले० अज्ञात)
इसका उल्लेख डॉ० पी० वी० काणे ने किया है । यह केवल उदाहरणों की टीका है। [6] ऋजुवृत्ति-नरसिंहसरि
ये तिम्मजी मन्त्री के पुत्र और रंगनाथ के पौत्र थे । यह टीका केवल काव्यप्रकाश को कारिकामों पर निर्मित केरोफेक्ट भा० २, १६बी मद्रास ८.३८१ में इसका उल्लेख हुआ है। इन्होंने एक अन्य काव्यप्रकाश टीका "साहित्या चन्द्र' नाम से भी लिखी है। [१०] कारिकार्यप्रकाशिका (अर्थप्रकाशिका)- रघुदेव न्यायालङ्कार
भौफेक्ट, २० में (उल्लास २ के लगभग अन्त तक होने का) उल्लेख है । डॉ० पी० वी० कासे के अनुसार