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____टीका के लेखन में शास्त्रीजी ने पर्याप्त चिन्तन प्रस्तुत किया है तथा 'काव्यप्रकाश' में 'लेखाशुद्धि', 'विषया. शुद्धि' तथा 'प्रसङ्गासङ्गति' के आधार पर शुद्धिपूर्वक प्रायः नवीन पाठ जोड़ने की भी प्रेरणा दी है। .. श्रीमधुसूदन शास्त्रीजी ने 'काव्यमीमांसा' की टीका लिखने से प्रारम्भ करके रसगङ्गाधरादि प्रायः १८ प्रन्यों पर टीकाएँ लिखी हैं। ...
इस टीका का प्रकाशन 'ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स, बुकसेलर-वाराणसी' ने सन् १९७२ ई. में किया है। [६८] टीका- सदाशिव दीक्षित ( १९७२ ई०)
सोलन (शिमला-हिमाचल प्रदेश) में म०म० श्रीमथुरानाथ जी दीक्षित के पुत्र श्रीसदाशिव दीक्षित ने इस टीका के बारे में स्वरचित 'कर्पूरस्तवराज' की टीका के पृष्ठान्त-विवरण में उल्लेख किया है। सम्भवत: यह पंजाब विश्वविद्यालय की परीक्षा में निर्धारित काव्यप्रकाश के कुछ अंशों पर लिखी गई (?) टीका होगी। [६६ ] बालबोधिनी-विद्यासागरी-- छज्जूराम शास्त्री विद्यासागर (१९७४ ई०)
म० म०पं० छज्जूरामजी शास्त्री विद्यासागर वर्तमान में दिल्ली में निवास करते हैं । प्राचीन पीढ़ी के पण्डित होने के नाते इनका वैदुष्य व्यापक है। न्यायादि दर्शन, व्याकरण तथा साहित्य में बहुत-सी कृतियाँ इन्होंने लिखी हैं। प्रस्तुत टीका की रचना के प्रारम्भ में टीकाकार ने मङ्गलाचरण में ही लिखा है कि
प्रणिपत्य गणाधीश मातरं पितरं तथा । उद्भट काव्यसाहित्ये मम्मटं च बुधोत्तमम् ।। कुरुक्षेत्रप्रजनिना, इन्द्रप्रस्थनिवासिना । महामहोपाध्यायेन छज्जूरामेण शास्त्रिणा ॥
वामनाचार्य-टीकातः सारमाकृष्य यत्नतः । काव्यप्रकाशस्य निधेः कुजिकेय विधीयते ।। तथा प्रथम उल्लास के अन्त में
"इति महामहोपाध्यायछज्जूरामशास्त्रिविद्यासागरेण कृतायां काव्य-प्रकाशटोकायां परीक्षात्यायां काव्यस्वरूपनिर्णयो नाम प्रथम उल्लासः ।'
इन उद्धरणों से ज्ञात होता है कि शास्त्रीजी की यह टीका झलकीकरजी की टीका के सारांश के रूप में तैयार हुई थी, इन्हीं अंशों के अन्त में लिखा गया है कि यह 'कुञ्जिका' है, इसका नाम 'परीक्षा' है। कहीं 'बालबोधिनी' नाम दिया है तो कहीं 'विद्यासागरी'। उपलब्धांश के निरीक्षण से यह ज्ञात होता है कि यह टीका परीक्षार्थियों की सुविधा के लिये बनाई गई थी।
१. यह टीका तैयार करके शास्त्रीजी ने प्रकाशनार्थ दी थी, किन्तु दुर्दैववश वह लुप्त हो गई। इसका प्रथम उल्लास ही
प्रतिलिपि के रूप में अभी प्राप्त है।