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इसका प्रकाशन 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' (ग्रन्थाङ्क ४०) मे प्रा. रसिकलाल छोटालाल परिख के सम्पादक में (वि. सं. २००६) में हुया है।'
[ ३३ ] टोका- तिरुवेङ्कट ( सन् १६०० ई० के निकट )
ये चिन्नतिम्म के पुत्र तथा तिरुमल गुरु के पौत्र थे । नाम से यह स्पष्ट है कि ये दक्षिणभारतीय थे। इन्होंने अपनी टीका में भट्ट गोपाल की टीका का उल्लेख किया है। इसी आधार पर इनका समय सोलहवीं शती निर्धारित किया जा सकता है । मद्रास 'केटलाग, ए. ३१८ पर इसका निर्देश है।
३४ ] रहस्यप्रकाश- रामनाथ उपाध्याय ( सन् १६०० ई० के निकट )
यदि ये मैथिल हों, तो आजकल नेपाल राज्य के अन्तर्गत (पहले स्वतन्त्र) मोरङ्ग देश के अधिपति और सोरमदेवी के पति कंस-नारायण के सभापण्डित थे और 'रागतरङ्गिणी' में इनके द्वारा रचित गीत के म०म० लोचनकवि द्वारा उदाहृत होने के कारण इनका स्थितिकाल ईसा की सोलहवीं शती माना जा सकता है।
डॉ० डे ने इनका नाम रामनाथ विद्यावाचस्पति: लिखा है तथा इन्हें बंगाली टीकाकार बतलाया है। वहीं यह भी लिखा है कि प्रोफेक्ट १०२ ए. पर इसका उल्लेख है। भवदेव की 'संस्कारपद्धति' पर इनकी टीका की रचना १६२३ ई० में हुई थी। ( देखिए प्रोफेक्ट i, ५१६ ए.)
[३५] टीका- रुचि( कर ) मिश्र ( १६वीं शती ई०)
'नरसिंह मनीषा' में 'मिश्र' नाम से जिसका उल्लेख हुआ है, वे ये ही रुचिकर मिश्र हैं। ये म० म० गोविन्द ठक्कुर की विमाता से उत्पन्न बड़े भाई रुचिकर से भिन्न हैं । अन्य जानकारी प्राप्त नहीं है। [ ३६ ] टीका- हर्षकुल (जैन मुनि) ( १६वीं शताब्दी ई० )
ये विक्रम की सोलहवीं शती में उत्पन्न एवं जैन सम्प्रदाय के 'तपा' गच्छ में दीक्षित जैन मुनि थे। इनका विशेष परिचय एवं टीका सम्बन्धी ज्ञातव्य प्राप्त नहीं है। 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास भाग १, पृ. २२८ में श्री कापड़िया ने इसका उल्लेख मात्र किया है।
[ ३७ ] टीका- गदाधर चक्रवर्ती भट्टाचार्य ( १६वीं शती० ई० का अन्तिम भाग)
बङ्गाल के पवनमण्डलान्तर्गत 'पक्ष्मीपाश' नामक गाँव में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम जीवाचार्य था। आपने नवद्वीप में रहकर हरिराम तर्क वागीश से समग्र न्यायशास्त्र का अध्ययन किया था। इनका जन्मकाल ई०१६वीं शताब्दी का अन्तिम भाग माना गया है। रघूनाथ शिरोमणि के 'तत्त्वचिन्तामणि-दीधिति' ग्रन्थ पर
१. 'काव्यप्रकाशखण्डन' को माध्यम बनाकर दिल्ली विश्वविद्यालय से पी-एच०डी० उपाधि के लिये हमारे मित्र श्री
विश्वप्रकाशजी (व्याख्याता श्री ला० ब. शास्त्री के० सं० विद्यापीठ) अपना शोधप्रबन्ध प्रस्तुत कर रहे हैं। २. यह निर्देश कविशेखर श्री बद्रीनाथ झा ने गोकुलनाथी विवरण की भूमिका में पृ०६ पर दिया है। ३. द्र० संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास भाग १, पृ० १६१ । ४. इसका निर्देश कविशेखर श्री बद्रीनाथ झा ने 'विवरण' की भूमिका पृ० ११ में किया है।