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पाहा
३. काव्यालङ्कार-निबन्धन-(२) रुद्रट को ही कृति पर यह द्वितीय टीका 'सपादलक्ष' देश से निकल कर मालवा की धारानगरी में रहकर विद्याभ्यास करनेवाले दिगम्बर जैन पं० प्राशाधर ने बनाई है। इसी टीकाकार ने 'सागारधर्मामृत' तथा 'अनगारधर्मामृत' पर भी क्रमशः ई० सन् १२३६ तथा १२४३ में टीकाएँ लिखी हैं । अतः प्रस्तुत 'निबन्धन' का समय भी इसी के बीच माना गया है।
४. से ६. काव्य-प्रकाश-संकेत एवं अन्य ६ टीकाएँ-मम्मट के 'काव्यप्रकाश' पर निर्मित इन सात टीकानों का परिचय हम आगे स्वतन्त्ररूप से प्रस्तुत करेंगे । अतः वहीं देखें ।
१०. सरस्वतीकण्ठाभरण-पदप्रकाश-महाराजा भोजदेव के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ 'सरस्वती-कण्ठाभरण' पर पद-प्रकाश, नामक इस टीका के निर्माता हैं पार्श्वचन्द्र के पुत्र 'प्राजड़'। इस टीका की पुष्पिका तथा अन्य टीकांश पत्तन०भा० ग्रन्थ-सूची (भाग१, पृ० ३७-३६) में उद्घत हैं।
११. चन्द्रालोक-टीका 'काव्याम्नाय'-जिनरत्नकोश (खण्ड १, पृ. ११) में इस टीका के बारे में संकेत किया है जो संशयपूर्ण है।
१२. विदग्धमुखमण्डन-धर्मदास नामक बौद्ध विद्वान् द्वारा प्रणीत इस ग्रन्थ के चार परिच्छेदों में प्रहेलिका और चित्रकाव्यों का विवेचन हुआ है । इस पर जैन विद्वानों ने लगभग आठ टीकाएँ बनाई हैं, जो इस प्रकार हैं
(१) प्रवचूरिण-इसके रचयिता 'खरतर' गच्छ के प्राचार्य महान् स्तोत्रकर श्री जिनप्रभसूरि हैं।
(२) टीका- खरतर' गच्छ के ही जिनसिंह सूरि के प्रशिष्य और लब्धिचन्द्र के शिष्य जिनचन्द्र ने यह टीका ई० स० १६१२ में लिखी है।
(३) वृत्ति --सत्रहवीं शती के विनयसुन्दर के शिष्य बिनयरत्न की यह कृति है।
(४) टोका-ई० सन् १६४२ में खरतर गच्छ के सुमतिकलश के शिष्य विनयसागर ने इस टीका की रचना की है।
(५) टीका-इसके कर्ता भीमविजय हैं।
(६) प्रवचूरि--जिनरत्नकोश (खण्ड १, पृ० ३५५) में इस अज्ञातकर्तृक कृति का उल्लेख हुआ है तथा इसका प्रारम्भ 'स्मृत्वा जिनेन्द्रमपि' से बतलाया है।
(७) टीका-इस टीका के बारे में 'भारतीय विद्या' वर्ष २, अंक ३ में श्री अगरचन्द नाहटा के 'जनेतर ग्रन्थों पर जैन विद्वानों की टीकाएँ' शीर्षक लेख में कुकुदाचार्य-सन्तानीय द्वारा रचित कहा गया है।
(E) बालावबोध-सट्ठिसयगपयरण, वाग्भटालङ्कार आदि अनेक ग्रन्थों पर बालावबोध की रचना करने वाले उपाध्याय मेरुसुन्दर ने १५४४ श्लोकप्रमाण इस बालावबोध की रचना की है। इसमें प्रारम्भिक ५ पद्य संस्कृत में हैं और यत्रतत्र संस्कृत में विवरण एवं गुजराती में अर्थ दिया है।
[ ६-अजैन छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थों पर जैन प्राचार्यों को टोकाएँ] (१)श्रतबोध-वृत्ति-महाकवि कालिदास के नाम से प्रसिद्ध इस ४४ पद्य की कृति पर नानक अपरनाम जीमूतानन्द के शिष्य हंसराज ने यह वृत्ति ई० सन् १५८८ के निकट निर्मित की है।