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इस टीका के अन्य नाम 'दीपक' और 'जयन्ती' भी हैं। परमानन्द चक्रवर्ती तथा रत्नकण्ठ ने जयन्त भट्ट को उल्लेख किया है। रत्नकण्ठ का तो कथन भी है कि मैंने अपनी टीका 'जयन्ती' के आधार पर लिखी है। काव्यप्रकाश के प्रारम्भिक टीकाकारों में जयन्त भट्ट का भी विशेष महत्त्व है।
इस टीका का संक्षिप्त सार भाण्डारकर की रिपोर्ट १८८३-८४ के परिशिष्ट पृष्ठ ३२६ में उपलब्ध है।
[६] काव्यप्रकाश-विवेक- श्रीधर ठक्कुर' तर्काचार्य ( तेरहवीं शती ई० का प्रथम चरण) .
तर्काचार्य श्रीधर ठक्कुर मैथिल ब्राह्मण थे। इनका स्थितिकाल ईसवीय तेरहवीं शती का प्रथम चरण माना गया है। ये तीरभूक्ति के शासक शिवसिंहदेव के 'सन्धिविग्रहिक' थे। इनके सम्बन्ध में कुछ परिचय मिथिलातत्त्वविमर्श, तीरभुक्ति का इतिहास तथा 'रायल एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता' में स्थित 'काव्यप्रकाश-विवेक की अन्तिम पुष्पिका “समस्त-विरुदावली विराजमान-महाराजाधिराज-श्रीशिवसिंहभुज्यमान, तीरभुक्तो गजरथपुरे सत्प्रक्रियसपाध्याय-विद्यापतीनामाज्ञया खौवालसं-श्रीदेवशर्म-वलियाससं-श्रीप्रभाकराभ्यां लिखितंषा पुस्ती, ल. : स. २६१, (सं० १३६६) इति ।" में प्राप्त निर्देश से ज्ञात होता है।
श्रीधर ठक्कुर ने भनेक शास्त्रीय तत्त्वों पर अपने विचार भी व्यक्त किये हैं, जिनकी समालोचना के लिए उत्तरवर्ती टीकाकारों को अवसर मिला है। 'विवेक' की एक पाण्डुलिपि १४०५ ई० में मिथिला में तैयार की गई थी। (शास्त्री केट. ASB. MSS. vi, cclxxi-) इसी पाण्डुलिपि के पृष्ठान्त विवरण में 'तर्काचार्य ठक्कुर' ऐसा उल्लेख है । चण्डीदास तथा विश्वनाथ ने 'सन्धि-विग्रहिक' उपाधि के साथ श्रीधर का उल्लेख किया है । अत: श्री सुशीलकुमार डे ने भी इनका समय १३वीं शती ई० का प्रथम चरण माना है।
यह टीका भी प्राचीनतर है। इसका प्रकाशन 'चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी' से अभी-अभी हुआ है। इससे पूर्व यह पं० शिवप्रसाद भट्टाचार्य के सम्पादकत्व में संस्कृत कालेज, कलकत्ता' से १६५६ ई० में १.४ उल्लास सहित प्रथम भाग के रूप में प्रकाशित हुई थी।
[७ ] काव्यप्रकाश-दीपिका- महामहोपाध्याय श्री चण्डीदास ( सन् १२७० ई० के निकट )
ये उत्कलवासी कापिजलवंशीय विलासदास के पुत्र थे। 'काव्यप्रकाश-दीपिका की कलकत्तास्थित 'रायल एशियाटिक सोसायटी' की ३७६७ संख्यक पाण्डुलिपि में दी हुई पुष्पिका-"इति कापिञ्जल-कुलतिलक-षड्दर्शनीयचक्रवति-महाकविचक्रचूडामरिण - सहृदयगोष्ठीगरिष्ठ-महामहोपाध्याय-महापात्र- श्रीचण्डीदासकृतकाव्यप्रकाशदीपिकायाम्" से इनका परिचय कुछ अंशों में प्राप्त होता है। इसी वंश में विश्वनाथ कविराज का. भी जन्म हुआ था। चण्डीदास के पितामह नारायणदास थे,' जिनका उल्लेख विश्वनाथ ने भी 'साहित्य-दर्पण' में किया है। इन्हीं आधारों पर ये विश्वनाथ के प्रपितामह के अनुज के पुत्र माने गये हैं ।
१. इन्होंने त्रिकलिंग के राजा नरसिंह के दरबार में धर्मदत्त को पराजित किया था। इसकी रचना लेखक ने
अपने मित्र लक्ष्मण भट्ट के अनुरोध पर की थी। प्रस्तुत दीपिका में (पृ० १६८ पर) खमनकृत का उल्लेख है।