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प्रस्तुत टीका में किसी अन्य टीकाकार का उल्लेख नहीं है । केवल आठवें उल्लास में
"राजा भोनो गुणानाह विशति चतुरश्च यान् ।"
वामनो दश तान् वाग्मी भट्टस्त्रीनेव भामहः ॥" यह उल्लेख किया है । अतः इसकी प्राचीनता निःसन्दिग्ध है।
इस टीका का केवल एक अंश (१-२-३ तथा १० उ० पर) 'काव्य-प्रकाश' के एस० एस० सुखटण कर सम्पादित संस्करण के अन्तर्गत बम्बई से १६३३, १९४१ में प्रकाशित है। पाण्डुलिपि के उद्धरण पीटर्सन की रिपोर्ट में भाग १, पृ०७४ तथा IOC, भाग ३ पृ० २२५ इत्यादि में छपे हैं ।
[५] काव्यप्रकाश-दीपिका-पुरोहित जयन्त भटट् (सन् १२६४ ई० रचनाकाल)
ये गुजरात के नरेश सारङ्गदेव के महामात्य, पुरोहित श्रीभरद्वाज भट्ट के पुत्र थे। इनके पिता श्रुति, स्मृति दर्शन, साहित्य आदि विषयों के पूर्ण ज्ञाता और गुर्जरेश्वर से पर्याप्त सम्मान प्राप्त थे । जयन्त भट्ट ने 'काव्य-प्रकाशदीपिका' में कहीं-कहीं मुकुल भट्ट का भी उल्लेख किया है। अन्य किसी टोकाकार का नाम नहीं आया है। इन्होंने अपना परिचय दीपिका के अन्त में इस प्रकार दिया है
संवत् १३५० वर्षे ज्येष्ठवदि ३ रवौ, अधेह प्राशापल्ली-समावासित-श्रीमद्विजयकटके सकलाराति-भूपालमौलिमुकुटालङ्कारभूषित-पादपङ्कज-महाराजाधिराजश्रीसारङ्गदेवकल्याणविजयराज्ये साहित्यबिसिनीविकासनकभास्करस्य सकलालङ्कारविवेक-चतुरमानसमानसराजहंसस्य षट्दर्शनपारावार-पोतायमानावान्तरप्रतिभानिमज्जनक-महापोतस्य निखिलपुराणपुराणीकृतमार्गतरविद्वज्जनमनोऽज्ञानमहान्धकारसंहारसहस्रकरस्य श्रुतिस्मृतिमहार्थनिर्धान्तविभ्रान्तविद्वज्जनमनोऽज्ञानतिमिरपरिहारचन्द्रोदयस्य श्रीमद्गुर्जरमणलेशमुकुटालङ्कार-प्रमापरिचुम्बनबहुलीकृत-चरणनखकिरखस्य महामात्य-पुरोहितश्रीमदभरद्वाजस्याङ्गभुवा पुरोहितश्रीजयन्तभट्टन सकलसुधीजनमनोऽज्ञानतिमिरविनाशकारणं विरचितेयं काव्यप्रकाशदीपिका'।
तथा-श्रीमदभरद्वाज-पदाम्बुजीयप्रसादतो ग्रन्थरहस्यमेतत् ।
विज्ञाय किञ्चित् कृतवानु जयन्तस्तत्र प्रमाणं सुधियां वितर्कः॥ . इस प्रकार प्रस्तुत टीका की रचना का उद्देश्य भी "विद्वानों के मन पर विद्यमान अज्ञानतमःपटल को दूर करमा" बताया गया है।
येषां पादारविन्दे स्मृतिरपि जडताहारिणी देहभाजां, तेष्टीकेयं सरस्वत्युपपदविलसत्तीर्थसंज्ञैरकारि ॥१॥ साहित्यकमुदकानननिद्राविद्राणयामिनीनाथाः ।
काव्यप्रकाशटोकां व्यरीरस्ते सरस्वतीतीर्थाः ।। २ । एवं सरस्वतीतीर्थयतिना तेन निर्मिता । टीका काव्यप्रकाशस्य मुदे स्याद्विदुषां चिरम् ॥ ३ ॥ १. ये सारङ्गदेव-शाङ्गदेव तृतीय बघेला सम्राट थे। इन्होंने पट्टन में १२७७-१२६७ ई० तक राज्य किया था।
द्र० भण्डारकर रिपोर्ट, १८८३-८४ पृ० ११-१८ । पीटर्सन रिपोर्ट भाग २ पृ० १७, २० ।