________________
चन्द्रिका' में दूषणार्थं अथवा भूषणार्थ यदि उद्धरण देने हैं तो वे 'उदाहरण- दीपिका' से ही दिये जाने उचित हैं । " [२६] मधुमति - रवि (पारिण) ठक्कुर ( सन् १५२५ - १६२० ई० )
पूर्वोक्त अच्युत ठक्कुर के पौत्र तथा म० म० रत्नपाणि के पुत्र थे। अतः इनका समय सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध है । न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी उपाध्याय ने अपनी टीका में 'मधुमतीकार' के नाम से इनका उल्लेख और समालोचन किया है। श्रा० विश्वनाथ के समान इनके 'कुल ' में भी निरन्तर तीन पुरुषों ने 'काव्यप्रकाश' की टीका के रूप अर्चना की है जो इस वंश की श्लाघनीय साहित्यसेवा है। इन्होंने स्वयं को गौरी तथा मनोधर अथवा रत्नपाणि का पुत्र एवं अच्युत का पौत्र कहा है। अच्युत मिथिला के राजा शिवसिंह अथवा शिवसिद्ध के मन्त्री थे । ( मनोधर ) रत्नपारिण की काव्यप्रकाश पर 'काव्यदर्पण' टीका है उसी टीका के आधार पर रवि ने अपनी प्रस्तुत टीका लिखी है । कमलाकर तथा नरसिंह ने मधुमतिकार एवं भीमसेन ने पिता और पुत्र दोनों का उल्लेख किया है। प्रस्तुत टीका का यह नाम इन्होंने अपनी पुत्री के नाम पर रखा है ।
[२७] टीका - मुरारि मिश्र ( सन् १५५० से १६०० ई० )
शाण्डिल्य गोत्री मंथिल श्रीकृष्ण मिश्र के पुत्र तथा म० म० केशव मिश्र और रामभद्र के अन्तेवासी थे । मोरङ्ग के नृपति लक्ष्मीनारायण से छठे त्रिविक्रम नारायण इनके श्राश्रयदाता थे । भीमसेन ने इनका उल्लेख किया है। प्रस्तुत टीका के अतिरिक्त इन्होंने 'शुभकर्मनिर्णय' आदि अन्य अनेक ग्रन्थों की भी रचना की थी । 'शुभकर्म- निर्णय' में इनका परिचयात्मक पद्य इस प्रकार है
विज्ञायाखिलशास्त्रममलं श्रीरामभद्राद् गुरो
मिश्रात् केशवतः स्मृतीरथ तयोः सारं विविच्य स्वयम् । पादाम्भोजयुगं प्रणम्य शिवयोः सङ्ख्यावतां प्रीतये,
७६
ord ' शुभकर्मनिर्णय' म श्रीमान् मुरारिः कृती ॥
'अनर्घ राघव' के निर्माता मुरारि इनसे पृथक् हैं क्योंकि रत्नाकर कवि ने 'हरविजय महाकाव्य ' में उनका स्मरण किया है और उनका काल नवम शती है । अतः वे मम्मट से पूर्ववर्ती थे । म० म० केशव मिश्र के पितामह यदि वाचस्पति मिश्र को मानते हैं तो उसके आधार पर श्री मिश्र का समय १५५० से १६०० ई० के मध्य माना जा सकता है । [ २८ ] काव्यप्रकाश भावार्थ - रामकृष्ण (भट्ट) (सन् १५५० ई० )
'नारायणभट्टी' प्रादि ग्रन्थों के कर्ता नारायण भट्ट के पुत्र एवं 'भाट्टवातिक' तथा 'काव्यप्रकाश' के व्याख्याकार और 'निर्णय सिन्धु' स्मृतिनिबन्ध के रचयिता 'कमलाकर भट्ट' के पिता थे। ये महाराष्ट्र के निवासी विश्वामित्र गोत्रोत्पन्न रामकृष्ण भट्ट ही इस टीका के कर्ता हैं ऐसा विद्वानों का मत है। इनका यह परिचय कमलाकर भट्ट काव्य - प्रकाश की 'कमलाकरी टीका' के इस पद्य से प्राप्त होता है
के
श्रीमन्नारायणाख्यात् समजनि विबुधो 'रामकृष्णाभिधान' - स्तत्सूनुः सर्वविद्याम्बुधि-निजचुलुकीकारतः कुम्भजन्मा । टीकi काव्यप्रकाशे कमलपदपरस्त्वाकरोऽरीरचद् यः, श्री पित्रोः पादपद्मं रघुपतिपदयोः स्वं श्रमं प्रापयच्च ॥
१. द्रष्टव्य, प्रो० धुंडिराज गोपाल सप्रेरचित - 'आचार्य मम्मट', पृ० ३३ । २. इस टीका का नाम कहीं-कहीं दीर्घं ईकरान्त 'मधुमती' भी लिखा है ।