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अध्यापिताऽसि विधुमुखि कौशलमिवाद्भुतं केन ।
गच्छसि यथा यथा बहिरहह ममान्तस्तथा तथा विशसि ॥ ६८८॥ यह पद्य यशोधरोपाध्याय के नाम से संगृहीत किया है।
न्यायाचार्य यशोविजयजी उपाध्याय ने भी अपनी टीका में इनके नाम का उल्लेख किया है तथा स्वयं यशोधर ने अपनी अन्य रचना 'कामसत्र-व्याख्या' में भदन्त रविदत्त का उल्लेख किया है, अतः इनका स्थितिसमय पन्द्रहवीं शती मानना उचित है। [२४ ] काम्य-प्रदीप-'छाया'- म०म० गोविन्द ठक्कुर ( १५वीं शती ई० का अन्तिम भाग)
ये मिथिला के निवासी थे। मैथिल श्रोत्रिय 'घूसोत' वंश में उत्पन्न श्रीकेशव ठक्कूर तथा सोनोदेवी के ज्येष्ठ पुत्र थे । जैसा कि 'प्रदीप' के आद्यन्त में स्वयं इन्होंने लिखा हैप्रादि में
सोनोदेव्याः प्रथमतनयः केशवस्यात्मजन्मा, श्रीगोबिन्दो रुचिकरकवेः स्नेहपात्रं कनीयान । श्रीमन्नारायचरणयोः सम्यगाधाय चित्तं, ध्यात्वा सारस्वतमपि महः काव्यतत्त्वं व्यनक्ति ।
ज्येष्ठे सर्वगुणः कनीयसि वयोमात्रेण पात्रे धियां, गात्रेण स्मरगर्वखर्वरणपरे निष्ठाप्रतिष्ठाश्रये । श्रीहर्षे त्रिदिवं गते मयि मनोहीने च कः शोधयेदत्राशुद्धमहो महत्सु विधिना मारोऽयमारोपितः॥१॥ परिशीलयन्तु सन्तो मनसा सन्तोषशीलेन । इममद्भुतप्रदीपं प्रकाशमपि यः प्रकाशयति ।।२॥ दीपिका द्वितयं काव्ये प्रदीप-द्वितयं सुतौ ।
स्वमतौ सम्यगुत्पाद्य 'गोविन्दः' शर्म विन्दति ॥ ३॥ . 'रुचिकर' इनके सौतेले भाई थे। इनके प्रपितामह रविठक्कुर और पितामह बुद्धिकर ठक्कुर थे। इन्होंने अपने भाई श्रीहर्ष का जो उल्लेख किया है वह नैषधकार श्रीहर्ष से भिन्न है। हयग्रीवोपासक, ताकिक एवं मालकारिक वडामणि बाल के जैसोर' जिले के जमीदार श्रीभवानन्दराय के पाश्रय में रहकर इन्होंने 'पृजाप्रदीप' प्रादि ग्रन्थों की भी रचना की थी। 'पूजाप्रदीप' के प्रारम्भ में इनका यह पद्य
न इलाधन्ते त्रिदशगुरवे यस्य विद्या विदन्तो, नासेवन्ते जलधितनयां येन दृष्टाः कृपाम् । नाकाक्षन्ति क्वचिदपि सुधां यस्य काव्यं पिबन्तः, सन्तः ! सोऽयं जयति जगति श्रीभवानन्दरायः ।। श्रीमत्केशवतनयो गोविन्दस्तन्निवेश (मनु) वर्ती।
प्रकटयति धर्मपदवी पूजाकर्म-प्रदीपेन ॥ १. द्रष्टव्य प्रस्तुत ग्रन्थ के पृ०६१ तथा १२ ।