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प्रस्तुत टीका के निर्माण को हेतु टीकाकार ने -
काव्यप्रकाशतरुरेष कुसम्प्रदाय-व्याख्या-विलोलमरुदाकुलितप्रतानः ।
सिक्तः पुनश्च प्रतिपल्लवतामपंतु, श्रीचण्डिदासकविवागमृतप्रपाहै ।। इत्यादि कथन द्वारा "दुर्व्याख्याओं के कारण काव्यप्रकाशरूपी वृक्ष का सूखना देखकर उसे पुन: सिक्त करना" बतलाया है।'
इस टीका के (डॉ० डे के अनुसार) मुख्यतः उड़िया, मैथिली और वाराणसी के लेखकों ने-जिनमें नरसिंह ठक्कुर, कमलाकर, गोविन्द, वैद्यनाथ और नागोजी भट्ट हैं, अपनी-अपनी काव्य-प्रकाश की टीकानों में तथा विश्वेश्वर के 'अलङ्कार-कौस्तुभ' में उद्धरण दिये हैं। इस टीका की इण्डिया आफिस में जो पाण्डुलिपि है, वह बंगला-लिपि में हैं। चण्डीदास ने स्वरचित 'ध्वनिसिद्धान्त' तथा 'साहित्यहृदयदर्पण संग्रह' ग्रन्थ का भी उल्लेख किया है।
इसका प्रकाशन (दो भागों में) पं० शिवप्रसाद भट्टाचार्य के सम्पादकत्व में वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से १६३८ ई० में हुआ है । इसमें 'इण्डिया आफिस, लन्दन तथा कोलबुक-संग्रह का भी उपयोग हुआ है। [८] साहित्य-चूडामणि- लौहित्य भट्ट गोपाल सूरि ( १३वीं शती ई० )
ये भट्ट गोपाल के नाम से परिचित एवं भानुदत्त की 'रसमञ्जरी' और रुद्र के 'शृङ्गारतिलक' के टीकाकार हरिवंश भट्ट द्रविड़ के पुत्र और नसिंह भट्ट के पौत्र हैं।२ वामन के काव्यालङ्कार-सूत्र की गोपेन्द्र तिप्पभूपाल' (१४२८.४६ ई०) कृत 'कामधेनु' टीका में कई बार इनका उल्लेख हुया है। इस आधार पर इनका समय १३वीं शती का माना जा सकता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ये भट्ट गोपाल रस तथा भाव के लोकप्रिय लेखक 'भाव-प्रकाशन' के रचयिता शारदातनय के पिता थे । शारदातनय के स्वयंलिखित विवरण के अनुसार इनका गोत्र काश्यप था । इनका निवास स्थान
१. डॉ० डे ने भी 'हिस्ट्री प्राफ संस्कृत पोइटिक्स' में टीका की रचना का उद्देश्य-'अपने मित्र लक्ष्मण भट्ट का
अनुरोध बताया है । इसी प्रकार एच०पी० शास्त्री केटलॉग (ASB. MSS. Vi CCIXvi) ने 'दीपिका' के लेखक चण्डीदास के विषय में एक विचित्र जानकारी दी है । जिसके अनुसार 'ये बंगाल के निवासी (मुखकुल) में उत्पन्न थे। इनका परिवार गङ्गातट पर उद्धरणपुर से चार मील पश्चिम में 'केतुग्राम' नामक स्थान पर रहता था। शास्त्रीजी के मतानुसार चण्डीदास का साहित्य-रचना काल १५वीं शती का मध्यभाग अथवा कुछ पहले था।' २. कुमारस्वामी (विद्यानाथ की एकावली की टीका रत्नापरण के कर्ता) और के० पी० त्रिवेदी के अनुसार । ३. इनके दूसरे नाम 'गोविन्द' अथवा स्वकथित नाम के अनुसार 'तिरपुरहर' भी हैं। ४. म० म० काणे ने इनका समय १७५० ई० के लगभग माना है। दे०पू०५०५, तथा पृ० ५४६ पर वहीं 'साहित्य-चडामणि' के लेखक भट्ट गोपाल का नाम देकर लिखा है कि-'पुस्तक में लेखक ने 'प्रदीपकृत
साहित्यदर्पणश्रीपाद' का उल्लेख किया है। रचनाकाल संवत् १६४०; जब कि लेखक १६ वर्ष के थे। ५. प्रार्यावर्ताहयेशे स्फीतो जनपदो महान् । 'मेहत्तर' इति ख्यातस्तस्य दक्षिणमागतः।
प्रामो माठरपूज्याख्यो द्विजसाहस्रसम्मितः । तत्र 'लक्ष्मण'नामासीद्विप्रः काश्यपवंशजः ।।