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वाग्देवतावतार आचार्य मम्मट
जन्मस्थान तथा जन्मकाल सम्बन्धी धारणाएँ
सरस्वतीधाम काश्मीर में उत्पन्न आचार्य मम्मट का काल विभिन्न विद्वानों ने श्रनेकविध ऊहापोहों के आधार पर ईसा को ग्यारहवीं शती को माना है। इनके जीवन परिचय को अभिव्यक्त करने के लिये 'काव्य - प्रकाश' की ई० सन् १६६५ के निकट निर्मित 'सारसम्मुच्चय' अपर नाम 'निदर्शना' टीका के उपसंहार भाग की ' इति शिवागमप्रसिद्धघा त्रिशतस्व दीक्षा- क्षपित सकल-मल-पटलः प्रकटित- सत्स्वरूप- चिदानन्दघनो राजानककुल- तिलको 'मम्मटनामा देशिकवर: • इत्यादि - पङ्क्तियाँ और 'सुधासागर' नामक 'काव्य प्रकाश' की टीका में प्रदत्त परिचय-पद्य प्रस्तुत किये जाते हैं । इन उद्धरणों के प्रथम अंश से मम्मट की शिवागमज्ञता एवं तदन्तर्गत दीक्षित होकर उपासना द्वारा मानवजन्म सार्थकता
१. 'शब्दब्रह्म सनातनं न विदितं शास्त्रः क्वचित् केनचित्, तद्देवी हि सरस्वती स्वयमभूत् काश्मीरदेशे पुमान् । श्रीमज्जयटगेहिनी सुजठराज्जन्माप्य युग्मानुजः, श्रीमन्मम्मटसंज्ञयाऽऽश्रिततनुं सारस्वत सूचयन् ॥ ४ ॥ मर्यादां किल पालयन् शिवपुरीं गत्वा प्रपख्यादराद, शास्त्रं सर्वजनोपकाररसिकः साहित्यसूत्रं व्यधात् । तद्वृत्ति च विरच्य गूढमकरोत् काव्यप्रकाशं स्फुटं, वैदग्ध्यैकनिदानमथषु चतुर्वर्गप्रदं सेवनात् ॥ ५ ॥ कस्तस्य स्तुतिमाचरेत् कविरहो को वा गुणान् वेदितुं, शक्तः स्यात् किल मम्मटस्थ भुवने वाग्देवतारूपिण: ? श्रीमान् कैयट प्रोटो ह्यवरजो यच्छात्रतामागतो,
aroori निगमं यथाक्रममनुव्याख्याय सिद्धि गतः ॥ ६ ॥ ( सुधासागरी टीका, प्रारम्भ भाग)
भीमसेन की यह टीका मम्मट के लगभग ६०० वर्षों के बाद सन् १७२३ में लिखी गई है, अतः इसमें कल्पना और किंवदन्ती का आश्रय ही अधिक लिया गया हो, ऐसा सम्भव है ।
वैसे काश्मीरी पण्डितों की परम्परागत प्रसिद्धि के अनुसार मम्मट 'नैषधीयचरित' के रचयिता महकवि हर्ष के मामा माने जाते हैं और इस सम्बन्ध में— 'तव वत्र्त्मनि वर्ततां शिवं' इत्यादि नैषध के द्वितीय सर्गस्थ पद्य से सम्बन्धित किंवदन्ती भी प्रचलित है ।
१. काव्यप्रकाश की प्रारम्भिक मङ्गलरूप 'नियतिकृत नियमरहितां' इत्यादि श्रार्या काश्मीरिक शैवागम के पूर्ण परिचय की प्रतीक है और इसी दर्शन की पृष्ठभूमि पर रस- दर्शन की स्थापना भी मम्मट ने की है । विशेष के लिए द्रष्टव्य- इसी आर्या की 'डॉ० सत्यव्रत सिंह कृत 'चन्द्रकला हिन्दी व्याख्या' ।