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(३) काव्यकल्पलता-मञ्जरी- यह भी तृतीय स्वोपज्ञ वृत्ति है किन्तु अब तक यह अनुपलब्ध ही है। इसके 'मञ्जरी' नाम से यह अनुमान किया जा सकता है कि यह 'परिमल' से पूर्व निर्मित हुई होगी।
(४) मकरन्द-यह वृत्ति 'अकबर शाहि' के राज्य काल में हुए तपागच्छ के श्रीहीरविजयसूरि के शिष्य शुभविजय गरिण ने ई० स० १६०८ में बनाई है। इसका प्राकार ३१६६ श्लोक-प्रमाण उल्लिखित है। ये सलीम अथवा जहांगीर के समय में हुए हैं।
(५) वृत्ति-३२५० श्लोक प्रमाणवाली इस वृत्ति का सूचन 'जिनरत्नकोश' (खण्ड १, पृष्ठ ८५) में श्रीयशोविजय गरिण द्वारा रचित वृत्ति के रूप में किया गया है। ये यशोविजयजी न्यायविशारद, न्यायाचार्य, काव्यप्रकाश के टीकाकार ही हैं अथवा कोई अन्य ? यह निश्चित नहीं कहा जा सकता।
(६) पल्लव-यह वृत्ति विबुधमन्दिर गणि द्वारा निर्मित है। साथ ही इसकी दो टीकाएँ १. 'कल्पलताविवेक' तथा २. 'कल्प पल्लवशेष' नाम से उपलब्ध होती हैं। इसकी पाण्डुलिपि का लेखनकाल ई० स० ११४८ है तथा इसका प्रारम्भ निम्नलिखित पद्य से होता है
"यत् पल्लवेन विवृत दुर्बोधि (घ) मन्दबुद्धिश्चापि । क्रियते कल्पलतायां तस्य विवेकोऽयमतिसुगमः ।।
इसमें मूल के प्रतीक देते हुए कल्पलता को विबुधमन्दिर, पल्लव को इस मन्दिर का कलश तथा शेष को इसका ध्वज कहा गया है।
कविशिक्षा नामक वृत्ति सहित 'काव्यकल्पलता' का प्रकाशन वाराणसी स्थित 'चौखम्बा संस्कृत पुस्तकालय' से सन् १८६० तथा उसके पश्चात् हुया है। श्री जगन्नाथ होशिंग ने इसका सम्पादन किया है। गायकवाड सरकार (बड़ौदा) की ओर से इसका मराठी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया है। रामशास्त्री वाराणसी तथा वामनशास्त्री, बम्बई ने भी इसे प्रकाशित किया है।
४. कविशिक्षा-श्रीविनयचन्द्र सूरि की यह कृति ई. स. १२२८ के निकट की है। इन्होंने पार्श्वनाथचरित्र' आदि बीस प्रबन्धों की रचना भी की है। कुछ विद्वान् ई. स. १२२६ में 'मल्लिनाम-चरित्र' की रचना करने वाले तथा उदयसिंह रचित 'धर्मविधिवृत्ति' के संशोधक विनयचन्द्र को ही इस कविशिक्षा के प्रणेता मानते हैं। यह कबिशिक्षा 'विनय' अंक से अंकित है। इसके प्रारम्भ में बप्पभट्टि मूरि की कविशिक्षा को इसके प्रणयन में हेतुभूत माना गया है तथा इसमें तत्कालीन चौरासी देश सौराष्ट्र, लाट आदि का कुछ परिचय भी दिया है जिसका उल्लेख 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' ग्रन्थ में मिलता है। श्री लालचन्द्र भगवान गाँधी का कथन है कि यह 'कविशिक्षा' रविप्रभ गणीश्वर के शिक्षाशतक' का शिक्षण देने वाली है।'
५. कविकल्पलता-मालव-नरेश के अमात्य वाग्भट के पुत्र देवेश्वर' की यह चौदहवीं शती के मध्यभाग की
१. 'पत्तनस्या प्राच्यजन भाण्डागारीय ग्रन्थसूची" भाग १, प्रस्तावना प० ४८ में इसका नाम देवसेन दिया है तथा
श्री लालबहादुर शास्त्री के० सं० वि० दिल्ली में प्राप्त पाण्डुलिपि (सं० १८६४ में लिखित) में देवेन्द्र नाम दिया हमा है। 'बिब्लियोथिका इण्डिका' संस्करण में इनके 'चन्द्रकलाप ग्रन्थ का भी उल्लेख है।