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यदि उसकी प्रज्ञा यदा-कदा विसी प्रकार के शारत्रचिन्तन के लिए उसे बाध्य भी करती है, तो वह प्रभू की वाणीप्रागमशास्त्र के तत्त्व को समझने का प्रयास करता है अथवा स्वाध्यायोपयोगी साहित्य का परिशीलन करते हए ही अपनी प्रतिभा का उचित उपयोग कर लेता है। यह दृष्टिकोण बहुत समय तक जैन साधु-समुदाय में व्याप्त रहा; उसमें भी दिगम्बर-सम्प्रदाय में इस दृष्टिकोण का प्रभाव कुछ अधिक काल तक बना रहा। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्राचार्यों ने सारस्वत-साधना में प्रारम्भ में व्याकरण और तदनन्तर साहित्यादि विभिन्न साहित्याङ्गों के अध्ययनाध्यापन के साथ-साथ नबीन ग्रन्थ-निर्माण के द्वार भी उद्घाटित किये। फल यह हया कि दिगम्बर सम्प्रदाय के प्राचार्यों ने साहित्य के क्षेत्र में भी पर्याप्त चिन्तन प्रारम्भ किया और अनेक अभिनव रचनाएँ प्रस्तुत की।
इस चिन्तन में रचनाओं की दृष्टि से चार पद्धतियों का पालम्बन लिया गया । १. स्वतन्त्र ग्रन्थरचना, २. स्वरचित ग्रन्थ पर स्वोपज्ञ टीका-वृत्ति प्रादि का निर्माण, ३. जनेतर विद्वानों द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थों पर टीकानों को रचना तया ४. जैनाचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों पर टोकानों की रचना। इन पद्धतियों में एक ओर लेखक का मौलिक चिन्तन तो है ही साथ ही अपने द्वारा निर्धारित सिद्धान्तों की भी प्रस्थापना हो गई है। साहित्य के लाक्षणिक ग्रन्थों में भरत के नाट्यशास्त्र के समनन्तर काल से हो ऊहापोह तथा मत-मतान्तरों का समावेश हो गया था। प्राचार्यों ने अपने-अपने मतों की प्रस्थापना के लिए एक-दूसरे का खण्डन-मण्डन भी प्रारम्भ कर दिया था और काव्यात्मवाद, रसबाद, अलङ्कार-रीति-वक्रोक्ति-पौचित्य आदि से सम्बद्ध वादों की भी परम्पराएं प्रस्तुत करने के लिये ग्रन्थ लिखने प्रारम्भ कर दिये थे ऐसी स्थिति में जैन विद्वान् कैसे मौन रह सकता था ? यही कारण है कि उपर्युक्त चार पद्धतियों के ग्रन्थ जैनाचार्यों ने भी निर्मित किये। इन ग्रन्थों की संक्षिप्त तालिका इस प्रकार है
जैनाचार्यों द्वारा रचित काव्यशास्त्र
मूलग्रन्थ ४६
स्वोपज्ञटीका १३
जनेतर ग्रन्थों की टीका ३१
अन्य जैनाचार्यों की टीकाएँ २३
१. कविशिक्षा ५ २. अलंकार २१
३. नाट्यशास्त्र १ . ४. छन्द १६
कल्पलता ३ अलंकार ७ नाट्यशास्त्र १ छन्द-२
१. काव्यादर्श-१ २. काव्यालङ्कार-२ ३. काव्यप्रकाश-७ ४. सरस्वतीकण्ठाभरण-१ ५. चन्द्रालोक-१ ६. विदग्धमुखमण्डन-७ ७. श्रुतबोध ६ ८. वृत्तरत्नाकर ६
१. वाग्भटालंकार १२ २. काव्यानुशासन १ ३. काव्यकल्पलता १ ४. अलङ्कारचिन्तामणि १ ५. जयदेवच्छदस् २ ६. छन्दोनुशासन (हैम) २ ७. छन्दःशास्त्र १ ८. छन्दोऽनुशासन २ ६. छन्दःकोष १