________________
विषय की दृष्टि से प्रथम परिच्छेद में क्रमश: काव्यशिक्षण, काव्यरचना हेतु, काव्य-निर्माणोपयोगी प्रसंग तथा कवियों के पालन योग्य नियम दिये हैं। द्वितीय परिच्छेद में काव्य-निर्माण के लिये उपयोगी-'संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भूतभावा'-चार भाषाएँ, काव्य के गद्य-पद्यरूप भेद तथा पद, वाक्य एवं अर्थगत दोषों का विचार किया गया है। तीसरे परिच्छेद में दस गुणों की व्याख्या और उनका विवरण है जबकि चौथे परिच्छेद में शब्दालंकार के चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक ऐसे चार भेद अर्थालङ्कार के ३५ भेद तथा वैदर्भी और गौडी रीति का विचार किया गया है । पांचवें परिच्छेद में श्रृंगारादि नौ रस और नायक-नायिकाभेदों की चर्चा करते हए कुछ अन्य आवश्यक विषयों पर प्रकाश डाला गया है । ग्रन्थ में उदाहरणों की योजना प्रायः स्वयं लेखक ने की है । इसमें 'नेमिनिर्वाण-महाकाव्य' (वाग्भट कृत) से यमक के उदाहरण भी संगृहीत हैं।
यह ग्रन्थ जन सम्प्रदाय का प्रथम प्रलङ्कार-ग्रन्थ होने के कारण जैन और अजैन विद्वानों में पर्याप्त पाहत हुआ है, यही कारण है कि इस पर कई टीकाएँ लिखी गई हैं। इनमें जैन टीकाएं इस प्रकार हैं
(१) व्याख्या-सोमसुन्दर सन्तानीय श्रीसिंहदेव गणि रचित १३३१ श्लोक प्रमाण। यह मूल ग्रन्थ के साथ 'काव्य माला' ग्रन्थ संख्या ४८ में सन् १९०३ में प्रकाशित हुई थी। तदनन्तर अन्य प्रावृत्तियां भी विभिन्न प्रकाशको ने की हैं।
–तपागच्छीय विशालराज के शिष्य सोमोदयगरिण ने ११६४ श्लोक प्रमाण यह टीका लिखी है। (३) टीका-खरतरगच्छीय जिनप्रभसूरि सन्तानीय जिनतिलक सूरि के शिष्य उपाध्याय राजहंस की यह रचना है । इसकी एक पाण्डुलिपि सन् १४२६ ई. में लिखी हुई है ।
(४) टीका-जिनराजसूरि के शिष्य जिनवर्धन सूरि (१४०५-१४१६) ने इसका निर्माण किया है। इसकी एक पाण्डुलिपि सन् १५५३ की लिखी हुई प्राप्त होती है । यह 'ग्रन्थमाला' ३ में सन् १८८६-६० में प्रकाशित हुई थी।
(५) वृत्ति--वरतर गच्छीय श्रीरत्नधीर के शिष्य वाचनाचार्य श्री ज्ञानप्रमोद गरिण ने इस वृत्ति की रचना २९५६ श्लोक प्रमाण में सन् १६२६ में लिखी है । इसका नाम 'ज्ञानप्रमोदिका' है।
(६) टोका-इसके रचयिता सकलचन्द्र के शिष्य श्रीसमयसुन्दर गणि हैं। यह १६५० श्लोक प्रमाण है और इसका निर्माण सन् १६३५ में अहमदाबाद में हरिराम के लिये किया गया था।
(७) टीका-इसके कर्ता क्षेमहंसगणि हैं । यह टीका 'समासाश्रय-टिप्पण' नामक है । (८) टोका-इसके कर्ता कुमुदचन्द्र हैं । () टोका- इसके कर्ता के रूप में वर्धमान सूरि का उल्लेख किया जाता है किन्तु यह शङ्कास्पद है। (१०) टीका-इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। सम्भवत: यह 'प्रवचूरि' है।
(११) टिप्पणी-यह टिप्पणी कन्नड-लिपि में लिखित प्राप्त होती है। 'कन्नड प्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थ सूची' पृ० १६७ में इसके लेखक का नाम बालचन्द्र दिया है । ये दिगम्बर जैन हैं ।
- (१२) गुजराती बालावबोध--'सट्ठिसयपगरण' के कर्ता जैन गृहस्थ मारवाड़ी श्रीनेमिचन्द्र भण्डारी ने इसकी रचना की है।
(१३) गुजराती बालावबोष-खरतर गच्छ के मेरुसुन्दर ने सन् १४७८ में इसकी रचना की है। इसके