Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका
पर किसी प्राचीन प्रसिद्ध व्यक्तिका नाम दे देनेकी या ग्रन्थको प्राचीन नाम दे देनेकी भी परिपाटी रही है। उसीके फलस्वरूप बहुत-सी आधुनिक कृतियाँ भी आज उपनिषदोंका नाम धारण किये हुए हैं। ____ इन दो बातोंको दृष्टिमें रखते हुए हम प्रथम वैदिक साहित्यकी ओर आते हैं।
आये जन अन्वेषकोंका कहना है कि आर्य जातिकी एक शाखाने भारतवर्षमें प्रवेश करके एक नये समाज की स्थापना की थी। इससे पहले आर्य लोग मध्य एशियामें रहते थे। किन्तु जनसंख्या वृद्धि आदि कारणांसे उनका वहाँ रहना कठिन हो गया
और वे दल बनाकर इधर उधर चले गये। जो दल सुदूर पश्चिमकी ओर गया उनके वंशज आजके यूरोपियन राष्ट्र हैं। जो लोग ईरान और भारतकी ओर आये, उनके वंशज ईरानी
और भारतीय आर्य हुए। इसके विपरीत स्व० लोकमान्य तिलकका मत था कि आर्य लोगोंका आदिदेश उत्तरीय ध्र वके पासका स्थान था। एक समय पृथिवीका वह भाग मनुष्यों के बसनेके योग्य था। जब वहाँ हिम और सर्दीका प्रकोप बढ़ा तो आर्योंको वहाँसे हट जाना पड़ा। कुछ लोग यूरुपमें बसे, कुछ ईरानमें और कुछ भारतमें। ( अोरन)। अन्य कुछ भारतीय विद्वानोंका एक तीसरा मत है कि ऋग्वेदमें सप्तसिन्धव देशकी ही महिमा गाई गई है। यह देश सिन्धु नदीसे लेकर सरस्वती नदी तक था। इन दोनों नदियोंके बीचमें पूरा पंजाब और काश्मीर आ जाता है । तथा कुम्भा नदी जिसे आज काबुल कहते हैं, उसकी भी वेदमें चर्चा है। अतः अफगानिस्तानका वह भाग
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