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वर्षासागर
२६-चर्चा छब्बीसवीं प्रश्न-ऊपर लिखे मंत्रोंका जप किस जगह करना चाहिये ?
समाधान--अपने घरमें जप करनेका फल एक गुना है, वनमें जप करनेका फल सौगुना है। यदि पवित्र बागमें बा किसो वनमें जप करे तो उसका फल हजार गुना है। यदि जिनमंदिरमें जप करे तो उसका फल करोडगुना है। यदि भगवान जिनेन्द्रदेवके समीप जप करे तो अनंतगुना फल है। यही बात धर्मरसिक नामके ग्रन्थमें लिखी है। गृहे जपफलं प्रोक्तं वने शतगुणं भवेत् । पुण्यारामे तथारण्ये सहस्रगुणितं मतम् ॥३१॥ पर्वते दशसहस्र नद्यां लक्षमुदाहृतम् । कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधौ ॥ ३२ ॥
इससे सिद्ध होता है कि घर, वन, बाप आदि जगहोंसे भगवान जिनराजके निकट जप करनेसे अनंतगुना फल प्राप्त होता है।
जप करनेका विधान इस प्रकार है-मोक्षकी प्राप्तिके लिये अंगूठेसे जपना चाहिये औपचारिक कार्योमें तर्जनी उँगलीसे ( अंगूठेको पासवाली उंगलीसे ) जपना चाहिये । धन और सुखकी प्राप्तिके लिये मध्यमा । का बीचको जंगलोसे जप करना चाहिये । शान्तिक कार्यों में ( शान्ति कर्ममें किसी ग्रह वा उपद्रवको शांत । करनेके लिये ) अनामिका उंगलीसे ( बीचको उँगली पासवाली उंगलीसे । जपना चाहिये। तथा आहानन करनेके लिये कनिष्ठा उँगलीसे ( सबसे छोटी ऊँगलोसे) जपना चाहिये। शत्रुको नाश करनेके लिये तर्जनी उँगलीसे, धनसंपदाके लिये मध्यमासे, शांतिके लिये अनामिकासे और सकार्योकी सिद्धिके लिये कनिष्ठासे जपना चाहिये । इस प्रकार अलग-अलग उंगलियोंसे जप करनेका फल बतलाया है। लिखा भी हैअंगुष्ठजापो मोक्षाय उपचारे तु तर्जनी। मध्यमा धनसौख्याय शान्त्यर्थं तु अनामिका।
.....कनिष्ठा सर्वसिद्धिदा।
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१. पर्वतपर जपना दसहजारगुना फल देता है और नदोके किनारे जपता लाखगुना फल देता है। * 'तर्जनी शत्रुनाशाय' ऐसा पाठ होना चाहिये ।