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भाषा और साहित्य ]
विश्व भाषा-प्रवाह
- यास्क द्वारा विवेचित व्युत्पत्ति-क्रम को जानने के लिए एक उदाहरण उपयोगी होगा। आचार्य शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए वे लिखते हैं : आचार्यः कस्मात् ? आचार्य आचार ग्राह्यति, आचिनोत्यर्थान् आचिनोति बुद्धिमिति वा। जो आचार-ग्रहण करवाता है अथवा अर्थों का आचयन करता है, अन्तेवासी को पदार्थों का बोध करवाता है अथवा अन्तेवासी में बुद्धि का संचय करता है, वह आचार्य कहा जाता है। - 'श्मशान' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए यास्क लिखते हैं : श्मशानम् श्मशयनम् । शम = शरीरम् । शरीरं शृगाते। शम्नातेः वा। श्म शरीर जहां शयन करता है, चिरा निद्रा में सोता है, वह श्मशान कहा जाता है ।
महान वैयाकरण पाणिनि _____ यास्क के अनन्तर महान् वैयाकरण पाणिनि को भाषा-विज्ञान के विकास के सन्दर्भ में : सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण के गठन के अन्तर्गत पद-विज्ञान आदि का भी गम्भीर और वैज्ञानिक विवेचन किया। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों आपिशलि, काशकृत्स्न आदि का भी उल्लेख किया। पाणिनि के पूर्ववर्ती एक बहुत बड़े वैयाकरण इन्द्र थे। तैत्तरीय-संहिता इन्हें प्रथम वैयाकरण सिद्ध करती है। वहां लिखा है : “देवताओं ने इन्द्र से कहा-हमें भाषा को व्याकृत कर समझाइए।" . - इन्द्र ने वैसा किया। इन्द्र का वैयाकरण-सम्पदाय पाणिनि के पूर्व एवं पश्चात् भी चलता रहा। वर्तमान में जो प्रातिशाख्य प्राप्त हैं, वे इसी सम्प्रदाय के हैं। पातिककार कात्यायन भी इसी सम्प्रदाय के थे।
पाणिनि ने पूर्ववर्ती वैयाकरणों के महत्वपूर्ण शोध-कार्य का सार अष्टाध्यायी में समाविष्ट किया। उन्होंने कतिपय प्रसंगों में उदीच्य और प्राच्य सम्प्रदायों की भी चर्चा की है। कथासरित्सागर में सोमदेव ने लिखा है कि पाणिनि के गुरु का नाम उपाध्याय वर्ष था। कात्यायन, व्याडि और इन्द्रदत्त इनके सहपाठी थे। पाणिनि ने माहेश्वर सूत्रों के रूप में व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी देन दी है। माहेश्वर सूत्रों की कुछ अनुपम विशेषताएं हैं। उनमें ध्वनियों का स्धान एवं प्रयत्न के अनुसार जो धर्गीकरण किया गया है, वह ध्वनि-विज्ञान का उत्कृष्ट उदाहरण है।
पाणिनि की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उन्होंने केवल चौदह सूत्रों के आधार पर - १. वाग्वे प्राच्य व्याकृताऽवदत् । ते देवा इन्द्रमभवन्निमां नो वाचं व्याकूविति। तमिन्द्रो
मध्यतोऽवक्रम्य व्याकरोत् ।
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