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आगम-सम्पादन की यात्रा
१. पाठ-संशोधन तथा पाठ-निर्धारण
आगम-शोध-कार्य का प्रमुख अंग है-पाठ-संशोधन तथा उसका निर्धारण। इसी की सम्पन्नता से शोध-कार्य के दूसरे-दूसरे छोटे-बड़े सभी अंग-उपांग सम्पन्न होते हैं। यह कार्य प्रतिदिन मध्याह्न में लगभग दो घंटे तक चलता है। जिस आगम का पाठ-संशोधन करना होता है, उसकी प्राचीन प्रतियां प्राप्त की जाती हैं। वे प्रतियां हस्तलिखित, ताडपत्रीय या फोटो प्रिंट होती हैं। इनकी प्राथमिक जांच कर लेने के पश्चात् चार-पांच प्रतियां चुनकर रख ली जाती हैं और उनके आधार पर कार्य प्रारम्भ होता है। इनके साथसाथ तत्-तत् आगमों के व्याख्या-ग्रंथों-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, दीपिका, टब्बा, जोड़ों आदि का भी यथेष्ट उपयोग किया जाता है।
इस कार्य में प्रमुखतया आचार्यश्री तुलसी तथा निकाय सचिव मुनिश्री नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) अपना बहुमूल्य समय लगाते हैं। शेष मुनि जो इसमें संलग्न हैं, वे ये हैं
१. मुनिश्री सुदर्शनजी ३. मुनिश्री हीरालालजी २. मुनिश्री मधुकरजी ४. मुनिश्री बालचंदजी। श्रावक जयचन्दलालजी कोठारी (लाडनूं) भी इस कार्य में संलग्न रहते
पाठ-निर्धारण में प्रतियों तथा व्याख्या-ग्रंथों के अतिरिक्त पाठ के पौर्वापर्य तथा अन्य आगमों में उसके आवर्तन-प्रत्यावर्तन पर भी दृष्टि विशेष रूप से केन्द्रित रहती है।
यह कार्य निर्धारित समय पर तो चलता ही है, परन्तु समूचे दिन इस कार्य में दो-तीन मुनि लगे ही रहते हैं। वे इस कार्य के लिए सामग्री संकलित कर निकाय सचिव मुनिश्री के निर्देशानुसार उसे यथास्थान योजित कर देते हैं। २. अनुवाद और संस्कृत-छाया
हमारी यह अभिलाषा रही है कि प्रत्येक आगम का प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद तथा उसकी संस्कृत-छाया प्रस्तुत की जाए। अनुवाद मूलस्पर्शी हो तथा कोई भी शब्द अस्पष्ट न रहे, यह हमारा प्रयत्न रहा है। भावानुवाद भले ही सुगम हो, परन्तु कभी-कभी वह मूल से बहुत दूर चला जाता है