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दशवकालिक का पांचवां अध्ययन : एक दृष्टि हो रही है। पाठ-निर्धारण की भी एक समस्या है। जितनी प्रतियां, उतने ही संशोधन......ऐसी दशा में एक पाठ का निर्धारण करना अति कठिन हो जाता है। इसी प्रकार अर्थ का समाधान भी सरल नहीं हैं। आवश्यकता है कि इस दिशा में कार्य करने वाले विद्वान् पूर्ण सजगता से कार्य करें और किसी निर्णय पर पहुंचने से पूर्व विषय के चारों ओर गहरी डुबकियां लें तभी वे कुछ नई चीज दे सकेंगे। अन्यथा पल्लवग्राही निर्णयों से कुछ नहीं बनेगा।
आचार्यश्री तुलसी के आदेशानुसार चलने वाला 'आगम-अन्वेषण का कार्य' काफी प्रगति कर चुका है। दशवैकालिक सूत्र का सांगोपांग अन्वेषण प्रायः समाप्ति पर है। अकारादि-अनुक्रमणिका, विषय-सूची, संस्कृत-छाया, तुलनात्मक टिप्पणियां, विषय को स्पष्ट करने वाले टिप्पण व कथानक, हिन्दी में अनुवाद, पाठ-संशोधन आदि कार्य समाप्त हो चुके हैं। भूमिका-लेखन का कार्य अवशिष्ट है, जो शीघ्र ही प्रारंभ कर दिया जाएगा।
आज तक दशवैकालिक के कई अनुवाद सामने आ चुके हैं। उनमें बहत सी भूलें रह गई हैं। यह हो सकता है कि कार्य करने वालों ने अन्वेषण सामग्री के अभाव में उन पर ध्यान न दिया हो या प्रमाद व पूर्वाभिनिवेशवश उनसे त्रुटि हो गई हो।
२४. दशवैकालिक का पांचवां अध्ययन : एक दृष्टि
गाथा और श्लोक
व्यवहार में आगम के पद्यों को 'गाथा' कहा जाता है। यदि किसी से पूछा जाय कि दशवकालिक सूत्र के कितने पद्य हैं तो उत्तर होगा कि सात सौ गाथाएं हैं। 'गाथा' एक छन्दविशेष का नाम है। समस्त पद्यों को इस शब्द द्वारा संग्रह करना उचित नहीं लगता। पद्यशब्द समस्त छन्दों का संग्राहक बन सकता है। अलग-अलग छन्दों का निरूपण एक साथ न करने के कारण पद्य कहकर उस छन्दोनिबद्ध सूत्र को ग्रहण करना उचित लगता है। यदि यह कह दिया जाय कि दशवैकालिक सूत्र में इतने पद्य हैं तो यह सही संकेत हो सकता है।
प्राकृत छन्दोनुशासन के अनुसार 'आर्या' को 'गाहा' कहा जाता है और अनुष्टुप् श्लोक को 'सिलोग' (श्लोक) कहते हैं। अनुसंधान से यह पता लगा है कि दशवैकालिक सूत्र में गाथाएं नहीं हैं। (दूसरी परम्परा के अनुसार कुछ