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उत्तराध्ययनगत देश, नगर और ग्रामों का परिचय
१३१ उत्तर-पूर्वीय रेलवे के बलरामपुर स्टेशन से पक्की सड़क के रास्ते दस मील दूर है। बहराइच से इसकी दूरी २९ मील है।' जब फाहियान और हएनसांग इस स्थान पर गए थे तब तक यह नगर ध्वस्त हो चुका था। कहा जाता है कि ई. पू. पांचवीं शताब्दी में कोशल की राजधानी साकेत का महत्त्व कम हो गया था और उसके स्थान पर श्रावस्ती को राजधानी होने का सौभाग्य मिला था। वहां राजा प्रसेनजित् राज्य करता था।
श्रावस्ती महात्मा बुद्ध के विहार की उत्तरीय सीमा थी। यह ब्राह्मणों से अप्रभावित क्षेत्र था, अतः श्रमण-संस्कृति को यहां पनपने का अवसर मिला।
श्रावस्ती से राजगृह पैंतालीस योजन अथवा १३५ मील की दूरी पर था। एक मार्ग श्रावस्ती से राजगृह को किटागिरि और आलवि होते हुए जाता था, जिसकी दूरी तीस योजन अथवा नब्बे मील की थी और बनारस से वह दूरी बारह योजन थी। एक मार्ग खेतवा, कपिलवस्तु, कुसिनारा, पावा, मोगनगर और वैशाली होते हुए राजगृह को जाता था।
श्रावस्ती और साकेत के बीच एक चौड़ी नदी, संभवतः घाघरा बहती थी। इन दोनों नगरों की दूरी सात योजन अथवा इक्कीस मील की थी। कई इसको पैंतीस मील भी मानते हैं। दोनों नगरों के बीच 'तोरणवत्थु' नाम का ग्राम था।' श्रावस्ती से 'संकिसा तीस योजन दूर थी।
प्राचीन भारत में सड़कों के किनारे बड़े-बड़े नगर स्थापित थे। उनमें चम्पा, राजगृह, वैशाली, अयोध्या, श्रावस्ती आदि मुख्य थे। ये व्यवसाय के बड़े केन्द्र थे। एक बड़ी सड़क श्रावस्ती से प्रतिष्ठान तक जाती थी। इस पर १. Political History of Ancient India, p. 169. २. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. ५। ३. विनयपिटक, भाग २, पृ. १७०-७५ । ४. वाटर्स सृ. २,६१, फाहियान पृ. ६०-६२। ५. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. १३ । ६. विनयपिटक भाग-१, पृ. २५३।
भारत के प्राचीनतीर्थ, पृ. ३९।। ८. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. ७।
इसकी पहचान कम्बोज से ४५ मील पर अतरंजी और कन्नौज के बीच
संकिसा-बसंतपुर से की गई। १०. जातक ४, पृ. २६५ ।
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