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सूत्रकृतांग के आधार पर सभ्यता और संस्कृति
( प्रश्नव्याकरण सूत्र द्वार १ वृ. पत्र १३ में) इसका अर्थ - गोल्लदेश में प्रसिद्ध, दो हाथ प्रमाण वाला, वेदिका से उपशोभित 'जम्यान' (पालकी) विशेष किया है ।
४. डोल्ली - दो पुरुषों से उठाई जाने वाली पालकी ।
५. थिल्ली - एक विशेष प्रकार का यान जिसे खच्चर खींचते थे । संभव है यही 'अश्वतरीय - रथ' रहा हो ।
६. शिबिका - पालकी विशेष । यह पर्वतीय स्थलों का मुख्य वाहन था । धीरे-धीरे यह श्रीमन्तों के यहां, गांव में इधर-उधर जाने के लिए भी काम में आने लगा । अभयदेवसूरी के अनुसार हजार पुरुषों द्वारा वाहनीय, कूट के आकार वाली, शिखर से आच्छादित पालकी विशेष को 'शिबिका' कहा जाता था । '
बूढ़े बैल भी शकट में जोते जाते थे । गधों पर माल ढोया जाता था । ' भारुण्डपक्षी भी यातायात में काम आते थे ।
घोड़े, ऊंट, हाथी, बैल और गधों के लिए भिन्न-भिन्न मकान होते थे, जिन्हें- उष्ट्रशाला, हस्तिशाला, बैलशाला, घोटकशाला, गर्दभशाला आदि
कहा जाता था।
हाथी और घोड़ों को शिक्षित करने के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ होते
थे ।
कर्मकरों के प्रकार
१. दास - खरीदा हुआ या अपनी दासी का पुत्र । दास के अनेक प्रकार होते थे, जैसे- गर्भकाल में - १. अपने दोहद के लिए अपने प्रियतम पर दास की भांति शासन करना। २. काम भोग के लिए भ्रष्ट बने हुए दास ।
२. प्रेष्य- जिसे कार्यवश बाहर भेजा जाय वैसा नौकर ।
३. भृतक (भृत्य) – वेतन लेकर पानी आदि लाने का कार्य करने वाला । पाणिनि ने गणपाठ में अनेक प्रकार के भृत्यों का उल्लेख किया है
कूटाकारशिखराच्छादितो
जम्यानविशेष:
१. शिबिका - पुरुषसहस्रवाहनीयः
प्रश्नव्याकरण द्वार १ पत्र १३।
२. उज्जाणंसि जरग्गवा - १ । ३ । २ । २१, वादृच्छिन्ना व गद्दभा १ । ३ ।४।५ ।