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निशीथ भाष्य के कुछ शब्द-चित्र
१७३ मूलदेव के पास आ रुके। घोड़ा हिनहिनाया और पीठ ऊंची की। हाथी ने गर्जना की और सूंड से पानी ले मूलदेव को अभिषिक्त कर उसे पीठ पर चढ़ा लिया। सामुद्रिक आए और मूलदेव को राजा घोषित कर दिया और वह राजा बन गया। वह सभी अपराधों से मुक्त हो गया।' ___ शिष्य ने पूछा-'भंते ! दो व्यक्ति एक-जैसा अपराध करते हैं, क्या उन्हें एक-सा दंड दिया जाएगा? आचार्य ने कहा-'वत्स! दंड के निर्णय में अनेक द्रष्टियों से सोचना पड़ता है-धृति, संहनन, क्षेत्र, काल, अध्यवसाय आदि को ध्यान में रखना होता है।' ___आचार्य ने आगे कहा–'देखो! दो व्यक्ति छह-छह महीनों का प्रायश्चित वहन कर रहे हैं। एक व्यक्ति को प्रायश्चित प्रारम्भ किए केवल छह दिन हुए हैं और दूसरे व्यक्ति के प्रायश्चित-समाप्ति के केवल छह दिन शेष हैं। इस प्रायश्चित-वहन के अंतराल में दोनों ने छह मास का प्रायश्चित आए, ऐसा दूसरा अपराध कर लिया। ऐसी स्थिति में आचार्य पहले व्यक्ति को, जिसे पूर्व के प्रायश्चितों को वहन करते हुए केवल छह दिन ही बीते हैं, दूसरा प्रायश्चित भी पहले प्रायश्चित के अंतर्गत कर केवल छह मास का ही प्रायश्चित देंगे। दूसरे व्यक्ति को, जिसके छह महीनों में छह दिन बाकी हैं और छह मास का प्रायश्चित देंगे। इस प्रकार उसे लगभग एक वर्ष तक प्रायश्चित वहन करना होगा।' शिष्य ने कहा-यह राग-द्वेष क्यों?
आचार्य ने कहा-'यह राग-द्वेष नहीं है। सुनो-किसी व्यक्ति ने अग्नि जलाना प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में ही उसने काठ के बड़े-बड़े लकड़े उसमें डाले। अग्नि उन्हें जलाने में असमर्थ थी। वह तत्काल बुझ गई।
दूसरे व्यक्ति ने भी अग्नि जलाना प्रारम्भ किया। उसने प्रारम्भ में उपले के छोटे-छोटे टुकड़े, लकड़ी का चूरा आदि डाला। अग्नि जल उठी। जब वह दीप्त हो गई तब उसने उसमें बड़ी-बड़ी लकड़ियां डालीं। वे भी जल गईं। इसी प्रकार प्रायश्चित वहन करने वाला पहला व्यक्ति पहली अग्नि के समान है और दूसरा व्यक्ति दूसरी अग्नि के समान । पहले व्यक्ति को पूर्व अपराध के परिणामस्वरूप छह मास का प्रायश्चित है। उसे वहन करते केवल छह दिन बीते हैं और उस अंतराल में उसे यदि दूसरे छह मास का प्रायश्चित दिया जाए तो उसका उत्साह क्षीण हो जाता है। वह खिन्न हो जाता है और संयम से उन्मना