Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 184
________________ निशीथ भाष्य के कुछ शब्द-चित्र १७१ अथवा नदी और तालाब में डूबोना आदि दण्डों के द्वारा भी अपराधियों को • दण्डित किया जाता था। ६. शूली में पिरोना-अपानमार्ग से शूल लगाकर उसे मुंह से निकाला जाता था। ७. नमक छिड़कना-शस्त्र से शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर नमक आदि क्षार पदार्थों को शरीर पर छिड़का जाता था। ८. जननेन्द्रिय काटना-प्राचीनकालीन दण्डपद्धति के अनुसार पारदारिक व्यक्ति की जननेन्द्रिय काट दी जाती थी। ९. अंडकोशों को तोड़कर मुंह में डालना-उस समय परस्त्रीगामी अपराधी को दंड देने के लिए अपराधी के अंडकोशों को तोड़कर उसी के मुंह में डाल दिया जाता था। इस दण्ड से उसे अपार कष्ट होता था और वह जीवनभर के लिए मैथुनप्रवृत्ति के लिए अयोग्य हो जाता था। १०. मांस खिलाना-अपराधी के शरीर को काटकर काकिणी सिक्के जितने छोटे-छोटे मांस-टुकड़ों को भी अपराधी को खिलाने की प्रथा प्रचलित थी। ___ इस प्रकार सूत्रकृतांग के अध्ययन से उस समय में प्रचलित अनेक परम्पराओं और सभ्यताओं का बोध होता है और सहज ही आगमकालीन परम्परा और संस्कृति उजागर हो जाती है। ३५. निशीथ भाष्य के कुछ शब्द-चित्र शिष्य ने पूछा-'भगवन् ! कोई व्यक्ति अनेक अपराध करता है तो क्या उसे प्रत्येक अपराध के लिए भिन्न-भिन्न दंड दिए जाते हैं या एक ही?' आचार्य ने कहा-'वत्स! दंड देने की विधि एक नहीं है। अनेक प्रकार से दंड दिया जा सकता है। सभी अपराधों का एक दंड भी हो सकता है और अलग-अलग भी।' शिष्य ने पूछा-'यह कैसे, भगवन् ?' आचार्य ने कहा-'सुनो! एक रथकार था। उसकी स्त्री ने अनेक अपराध किए। रथकार इससे अनजान था। एक बार रथकार बाजार गया हुआ था। स्त्री अपना घर खुला छोड़कर पड़ोसी के घर में जा बैठ गई। घर को खुला देख

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