Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 183
________________ १७० आगम-सम्पादन की यात्रा १. परिचारक २. परिषेचक ३. उत्सादक ४. उद्वर्तक ५. प्रलेपिका ६. विलेपिका ७. अनुलेपिका ८. अनुचारक ९. मणिपाली १०. द्वारपाली ११. दण्डग्राह १२. चामरग्राह। ४. भागिक-भागीदार, जो कृषि आदि में छठे अंश की भागीदारी में संपृक्त होता था। ५. कर्मकर-वे व्यक्ति जो दूसरों का कार्य कर आजीविका चलाते थे, राजघरों में वेठ करते थे वे कर्मकर कहलाते थे। ६. भोगपुरुष-वे व्यक्ति जो किसी नेता के आश्रित अपना जीवन चलाते थे। दण्ड के प्रकार उस समय अपराधी व्यक्ति को दंडित करने के लिए दण्ड के अनेक प्रकार थे १. बेड़ी से बांधना-अपराधियों को बेड़ी से बांधा जाता था। २. बन्दी बनाना-बन्दी बनाकर अपराधियों को कारावास में डाला जाता था। वहां जूं, खटमलों आदि का उपद्रव रहता था। ३. दो जंजीरों से सिकोड़ कर लुढ़काना-कुछेक अपराधियों को कारावास में डालकर दो, तीन या सात सांकलों से बांधकर रखा जाता था। उसके हाथपैर और गले में सांकल डाल दी जाती थी। ४. हाथ काटना-चूर्णिकार ने इस विषय में कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं• अपहरण करने वाले के कान, नाक, ओठ काट दिए जाते थे। • जो गुप्तचर और दूत शत्रु राज्यों में आते-जाते थे उनके कान, नाक और ओठ छेद दिए जाते थे। • यदि स्त्रियां यह काम करती तो उनका सिर काट दिया जाता था। • अधर्म का आचरण करने वाले की जीभ तलवार से काट दी जाती थी। कन्धों का हनन कर वे ब्रह्मसूत्र से काट दिए जाते थे। जीवित व्यक्ति का हृदय, जीभ आदि निकाल दी जाती थी। ५. कूए आदि में लटकाना-कूए में लटकाना, पर्वत के नीचे फेंकना

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