Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 181
________________ १६८ आगम-सम्पादन की यात्रा उल्लेख हआ है। महानिद्देश में भी औष्ट्रयान तथा खरयान एवं जातक (५।३५५) में अस्सतरीय रथ का उल्लेख है। रथ बनाने वाले को 'रथकार' कहा जाता था। __ वहन और वाहन ये दो शब्द प्रचलित थे। नौका, जहाज आदि को 'वहन' और शकट, रथ आदि को 'वाहन' कहा जाता था। मुख्य वाहन १. शकट-माल ढोने के काम में आने वाली गाड़ियां 'शकट' कहलाती थीं। बैलों से खींची जाने के कारण उन्हें 'गो-रथ' भी कहा जाता था। बोझा ढोने की बड़ी गाड़ी या 'सग्गड' को शकट कहते थे। २. रथ-यह विशेषरूप से आवृत होता था, जिससे कि धूप और हवा से बचाव हो सके। इसमें बैठने की विशेष सुविधाएं होती थीं और ये केवल सवारी के ही काम आते थे। आज भी राजस्थान में रथ की सवारी यत्र-तत्र होती है। सांग्रामिक और देवयान-ये दो प्रकार के रथ प्रसिद्ध थे। सांग्रामिक रथ की वेदिका कटिप्रमाण होती थी। पुरुषों के सबसे अधिक उपयोग में आने वाला यान रथ था। नागरिकों के दैनिक कार्य-कलाप रथों पर ही निर्भर थे। रामायण में तीन प्रकार के रथों का उल्लेख है। (१) औपवाह्य रथ-प्रतिदिन की सवारी में काम आने वाला रथ। (२) सांग्रामिक रथ-युद्ध के समय काम में आने वाला रथ। (३) पुष्परथ-उत्सवों में काम में आने वाला रथ। ३. युग्य-यह मनुष्यों द्वारा वाहित होता था। इसे 'आकाशयान' भी कहते थे। यह एक विशेष प्रकार की गाड़ी थी, जो कि गोल्लदेश (कृष्णा-गोदावरी के बीच गोली) में प्रचलित थी। नवांगो टीकाकार अभयदेवसूरी ने १. पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ. १५२। २. १।४।१।९-रहकारो..... ३. वहनानि यानपात्राणि, वाहनानि शकटादीनि-प्रश्नव्याकरण द्वार १ वृ. प. १३। ४. सगडरहजाणजुग्गगिल्लिसिया संदमाणि-२।२।३५, वृ. पत्र ७३ । ५. प्रश्नव्याकरण द्वार १ वृ. पत्र १३। ६. रामायणकालीन समाज, पृ. २४६। ७. पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ. १५२।

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