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आगम- सम्पादन की यात्रा
पाली महानिद्देश में पथों का उल्लेख इस प्रकार है- वण्णुपथ, अजपथ, मेंढपथ, संकुपथ, छत्तपथ, वंसपथ, सकुणपथ, मूसिकपथ, दरीपथ, वेत्तचार
पथ । '
कात्यायन ने कान्तारपथ, स्थलपथ और वारिपथ का विशेष उल्लेख किया है।
आचार्य कौटिल्य ने मार्गों को दो भागों में बांटा है
(१) नगर के भीतरी मार्ग और (२) नगर के बाहरी मार्ग ।
नगर के भीतरी मार्ग
(१) राजपथ - सोलह गज चौड़े ।
(२) रथ्यापथ-आठ गज चौड़े ।
(३) रथपथ - ढाई गज चौड़े ।
(४) पशुपथ - दो गज चौड़े ।
(५) क्षुद्रपशुपथ या मनुष्यपथ - एक गज चौड़े ।
नगर के बाहरी मार्ग
(१) राष्ट्रपथ-राजधानी से बड़े-बड़े नगरों में जाने वाला मार्ग । (२) विवीतपथ - चरागाह को जानेवाला मार्ग ।
(३) द्रोणमुखपथ - चार सौ गांवों के केन्द्रीय नगर का मार्ग ।
(४) स्थानीयपथ-आठ सौ गांवों के केन्द्रीय नगर को जाने वाला पथ ।
(५) संयनीपथ - व्यापारिक मंडियों का मार्ग ।
(६) ग्रामपथ-गांवों को जाने वाला मार्ग ।
ये सभी मार्ग सोलह-सोलह गज चौड़े होते थे । राजपथ या बड़े मार्गों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगाये जाते थे । स्थान-स्थान पर जलाश्रयों का निर्माण किया जाता था । यह व्यवस्था राज्य द्वारा या विशिष्ट व्यक्तियों
१. भाग १ पृ. १५४,१५५; भाग २ पृ. ४१४,४१५ ।
२. देखो पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ. २३६ ।
३. कौटिल्य के आर्थिक विचार-ले. गगनलाल गुप्त, भगवानदास बेला, अध्याय १६ पृ. ९९ ।