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आगम- सम्पादन की यात्रा
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हो सकता है। पहली अग्नि की भांति असमय में ही बुझ जाता है ।
दूसरा व्यक्ति, जो छह मास से प्रायश्चित वहन कर रहा है, केवल छह दिन शेष हैं, उसे यदि दूसरे छह मास का प्रायश्चित दिया जाए तो वह दुगुने उत्साह से उसका वहन करेगा, क्योंकि उसे तपोलब्धि प्राप्त है तथा उसका धैर्य भी पक चुका होता है । वह दूसरे प्रकार की अग्नि की तरह है, जो बड़े-बड़े लकड़ों को भी भस्मसात् कर देती है ।