Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 174
________________ सूत्रकृतांग के आधार पर सभ्यता और संस्कृति अत्यन्त कठिन होता था । नगर के चारों ओर चार बड़े-बड़े द्वार होते थे और वे प्रायः सायंकाल के समय बन्द हो जाते थे । उसके बाद नगर में किसी का भी प्रवेश या निर्गमन बिना राजाज्ञा के नहीं हो सकता था । १६१ पाटलिपुत्र नगर में कामशास्त्र की पढ़ाई कराई जाती थी । ३ सिन्धु, ताम्रलिप्ति और कोंकण आदि देशों में दंश - मशक बहुत होते थे। वहां साधुओं का आवागमन यदा-कदा होता था, ऐसा प्रतीत होता है। टीकाकार के अनुसार उस समय मगधदेश की गणिकाएं प्रसिद्ध थीं और वे अनेक प्रकार के कपट करने में दक्ष समझी जाती थीं । वे हाव-भाव, कटाक्ष आदि की विद्याओं में निपुण और दूसरों को आकृष्ट करने में अनुपम थीं । उन्हें लोगों को मोहित करने के लिए दूर-दूर से बुलाया जाता था । मगध देश में संस्कृत आबालगोपाल की भाषा थी । लाढ देश म्लेच्छों का देश था। वहां चोर, हिंस्रपशु तथा अनार्य लोगों का पूर्ण भय रहता था। वहां धान्य रखने के लिए एक विशेष आकार का स्थान बनाया जाता था जिसे 'पल्लक' कहते थे । वह ऊर्ध्वायत और ऊपर से संक्षिप्त होता था । ' १. वलयं गहणं णूमं - १ । ३ । ३ । १ वृ. पत्र ८९ - यत्रोदकं वलयाकारेण व्यवस्थितं, उदरहिता वा गर्ता दुःखनिर्गमप्रवेशः. ...... तथा गहनं-धवादिवृक्षैः, कटिस्थानीयं णूमं प्रच्छन्नं गिरिगुहादिकम् । २. यावत् सविताऽस्तमुपगतः तदनन्तरमेव स्थिगितानि च नगरद्वाराणि - २।७ वृ. १६९ । ३. वैशिकं कामशास्त्रमध्येतुं पाटलिपुत्रं प्रस्थितः - १ । ४ । १ वृ. पत्र १११ । ४. क्वचित् सिन्धुताम्रलिप्तकोङ्कणादिके देशे अधिका दंशमशका भवन्ति - १ । ३ । १ वृ. प. ८३ । ५. मागधगणिकाद्या नानाविधकपटशतकरणदक्षा विविधविव्वोकवत्यो....१।४ । १ वृ. पत्र १०५ । ६. मगधदेशे सर्वेणाप्यागोपालाङ्गनादिना संस्कृतमेव उच्चार्यते - २ । २ वृ. पत्र ४८ । ७. १ । ३ । १ पत्र ७९ । ८. पल्लको नाम लाटदेशे धान्याधारविशेषः, स च ऊर्ध्वायत उपरि च किञ्चित् संक्षिप्तः - (आवश्यक - मलयगिरि वृत्तिपत्र ६८ ) ।

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