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सूत्रकृतांग के आधार पर सभ्यता और संस्कृति
१५९ 'उस समय राजगृह नगर एक समृद्धिशाली नगर था। वह धन, कनक से परिपूर्ण था। उसे 'सर्वकामप्रद' भी कहा जाता था। वहां अनेक धनाढ्य व्यक्ति रहते थे। वहां अनेक प्रासाद थे। वह नगर अत्यन्त रमणीय और दर्शनीय था। वह स्वर्ग का प्रतिबिम्ब माना जाता था। मगध देश का वह तिलक था। उसका दूसरा नाम ‘पंचशैलपुर' था। वह वैभार आदि पांच पर्वतों से सुशोभित था।
राजगृह नगर के उत्तर-पूर्व में 'नालन्दा' नगर बसा हुआ था। वह राजगृह का उपनगर (बहिरिका) कहलाता था। वहां सैकड़ों भवन थे। वह भी अत्यन्त समृद्धिशाली नगर था। उसकी विशेषता वहां पर रहने वाले 'लेप' नामक गृहपति के ऐश्वर्य से स्पष्ट होती है। गृहपति लेप वहां का प्रमुख नागरिक था। उसके अनेक मकान थे। उसके पास यान, वाहन, धन-धान्य की प्रचुरता थी। अनेक नगरों में उसका व्यवसाय चलता था। सामुद्रिक-व्यापार में वह प्रमुख था। उसके अपने ‘यानपात्र' थे। वह दूर-दूर तक सामुद्रिक यात्राएं करता था। उसके अनेक दास-दासी थे। स्थान-स्थान पर उसकी दानशालाएं चलती थीं। ऐसे धनाढ्य व्यक्ति नालन्दा में अनेक थे।
राजगृह व्यापारिक केन्द्र था और वह भारत के प्रायः बड़े-बड़े शहरों से, विभिन्न सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ था।
उस समय सारी वसतियां ग्राम, नगर, खेट, कर्वट आदि अनेक भागों में विभक्त थी। इन सबकी अलग-अलग परिभाषाएं और व्यवस्थाएं थीं।
१. ग्राम-जिसके चारों ओर कांटों की बाड़ अथवा मिट्टी का परकोट हो, वह।'
२. नगर-जो राजधानी होती थी उसे अथवा जहां किसी भी प्रकार का 'कर' नहीं लगता था उसे नगर कहा जाता था।'
३. खेट-ऐसा ग्राम जिसके चारों ओर नगर हो अथवा धूली का परकोटा १. मगहमंडलतिलअ राजगिहनयर-जयधवला। २. २७ सूत्र ६९-वृ. पत्र १६०,६१। ३. २५ सूत्र २१, स्थानांग २।४।सू. ५२० । ४. ग्रसति गुणान् गम्यो वाऽष्टादशानां कराणामिति ग्रामः, उत्तरा. ३०, बृ. वृत्तिपत्र,
६०५। ५. (क) नात्र करोऽस्तीति नकरम्, उत्तरा. वृत्तिपत्र, ६०५
(ख) देवतायतनैश्चित्रैः प्रासादापणवेश्मभिः । नगरं दर्शयेद् विद्वान्, राजमार्गश्च शोभनैः ।। सोमनन्दी-अर्थशास्त्र ।