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आगम- सम्पादन की यात्रा
४. कर्वट - पर्वत से घिरा हुआ ग्राम ।
५. मडंब - जिसकी चारों दिशाओं में ढाई गाऊ (कोश) तक कोई भी ग्राम न हो । २
६. द्रोणमुख- समुद्र के किनारे बसा हुआ ग्राम जिसमें जल और स्थल- दोनों से आने-जाने का मार्ग हो ।
७. घोष - आभीरों की वसति ।
८. पत्तन - जिसमें रत्नों की खाने हों अथवा जिसमें जल या स्थल- किसी एक मार्ग से माल ढोया जाए ।
९. आश्रम - तीर्थस्थान, तापसों का निवासस्थान ।
१०. सन्निवेश - छावनी ।
११. निगम - व्यापारियों का ग्राम ।
१२. राजधानी - राजा का निवास-स्थान ।
उस समय भारत अनेक इकाइयों में बंटा हुआ था। छोटे-छोटे राज्य थे। सबकी अपनी-अपनी सीमाएं थीं। वे आपस में बहुत लड़ते-झगड़ते थे। सबको सदा सावचेत रहना पड़ता था । प्रत्येक राजा अपनी-अपनी सुरक्षा के लिए स्थान की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देते थे । नगरों तथा गांवों के चारों ओर परकोटे होते थे। जहां पहाड़ों की नैसर्गिक सुविधा होती वहां पहाड़ के चारों ओर एक खाई खोदी जाती और उसे दुर्लंघ्य बना दिया जाता था । वे खाइयां पानी से भर दी जाती थी जिससे कि शत्रु उसको सहजतया पार न कर सकें। पर्वतों में स्थान-स्थान पर गुप्त स्थान बनाये जाते थे जिन्हें धव आदि सघन वृक्षों से ढक दिया जाता था । ऐसे स्थानों का पता लगाना दुश्मनों के लिए १. (क) धूलिप्राकारपरिक्षिप्तम् - खेटः, उत्तराध्ययन, वृत्तिपत्र ६०५
(ख) लोकप्रकाश सर्ग ३१, श्लोक २९०
तत्रवृत्यावृतो ग्रामो,
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नगरं राजधानी स्यात्,.
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२,३. अर्द्धतृतीयकोशान्तर्ग्रामशून्यं मडंबकम् ।
जलस्थलपथोपेतमिह द्रोणमुखं भवेत् ।। (लोक प्र. सर्ग ३१, श्लो. २ । १०) । ४. रत्नयोनिश्च पत्तनम् ।। (लोकप्रकाश सर्ग ३१, श्लोक ९ । १०)।