Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 153
________________ आगम सम्पादन की यात्रा जो मुनि वस्त्रों का त्यागी है, जो अनियतवासो है, जो वृक्ष-मूल, पर्वत और चतुष्पथ में वास करता है, जो वायु और हिम की ठंड को समभाव से सहता है', जो न स्वयं अग्नि जलाता है और न दूसरों द्वारा जलाई गई अग्नि का सेवन करता है, जो जीर्ण-वस्त्र हो जाने पर भी शीत से बचने के लिए अकल्पनीय वस्त्रों को ग्रहण नहीं करता, वह शीतपरीषह पर विजय पा लेता है । १४० ४. उष्ण- -परीषह मुनि गर्मी को सहन करे, किन्तु उसके निवारण के लिए जलावगाहन, स्नान, पंखे से हवा लेने तथा छत्र धारण करने की इच्छा न करे । 1 जो मुनि वायु और जल - रहित प्रदेश में पत्रों से रहित सूखे वृक्ष के नीचे या पर्वतों की गुफाओं में ग्रीष्म ऋतु में ध्यान करता है, असाध्य पित्तोत्पत्ति के कारण जिसके अन्तर्दाह उत्पन्न हो जाता है, दावानल के दाह जैसी गर्म वायु से जिसका कंठ सूख जाता है, फिर भी जो उसके प्रतिकार के लिए (सचित्त) आम्रपानक आदि का स्मरण नहीं करता, गर्मी से अत्यन्त तप्त होने पर भी जलावगाह, स्नान, व्यजन आदि की इच्छा नहीं करता और जो आतप से बचने के लिये छत्र आदि भी धारण नहीं करता, किन्तु गर्मी को समभाव से सहता है, वह उष्णपरीषह पर विजय पा लेता है । ५. दंशमशक - परीषह मुनि दंश-मशक आदि के द्वारा काटे जाने पर वेदना को सहन करे, किन्तु उसके निवारण के लिए दंश-मशकों को संत्रस्त न करे, मन में भी उनके प्रति द्वेष न लाए, उनकी उपेक्षा करे पर हनन न करे । , दंश - मशक, कीड़े मकोड़े, मत्कुण, बिच्छू आदि के काटने पर भी जो स्थान को नहीं छोड़ता, दंश-मशक को हटाने के लिए धुएं या पंखे का प्रयोग नहीं करता, उन्हें बाधा नहीं पहुंचाता, वह दंश - मशक - परीषह पर विजय पा लेता है । ६. अचेल - परीषह मुनि अचेलपरीषह को सहन करे । 'वस्त्र फट गए हैं, इसलिए मैं अचेल १. तत्त्वार्थसूत्र - श्रुतसागरीय वृत्तिपृ. २९८ । २. प्रवचनसारोद्धार, वृत्तिपत्र १९३ ।

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