________________
उत्तराध्ययन और परीषह
१४३
रात में क्या होना जाना है - यह साच कर जो भी सुख-दुःख हो उसे सहन करे ।
जो मुनि ऊंची, नीची, कठोर, कंकर, बालू आदि से युक्त भूमि पर एक करवट से लकड़ी-पत्थर की तरह निश्चल सोता है, भूत-प्रेत आदि के द्वारा अनेक उपसर्ग किये जाने पर भी जो शरीर को चंचल नहीं करता, सिंह आदि से आक्रान्त स्थान को भय से छोड़कर नहीं जाता, जो सम-विषम आंगन वाले धूल से भरे हुए अत्यन्त ठंडे तथा अत्यन्त गर्म उपाश्रय को तथा मृदु-कठिन या ऊंचा - नीचा संस्तारक पाकर उद्विग्न नहीं होता, वह शय्यापरीषह पर विजय पा लेता है ।
१२. आक्रोश - परीषह
मुनि आक्रोश को सहन करे । जो गाली दे उसके प्रति क्रोध न करे । परुष, दारुण और प्रतिकूल वचन सुनकर भी मौन रहे, उसकी उपेक्षा करे, मन में न लाए ।
जो मुनि दुष्ट तथा अज्ञानीजनों द्वारा कहे गये कठोर तथा निन्दा के वचनों को सुनकर क्रोधित नहीं होता । जो प्रतिकार करने का सामर्थ्य रखने पर भी प्रतिकार नहीं करता, जो यह सोचता है कि जो यह व्यक्ति कह रहा है वह यदि सत्य है तो यह मेरा उपकारी है, और यदि उसका कथन असत्य है तो मेरे क्रोध करने से क्या लाभ? वह आक्रोशपरीषह पर विजय पा लेता है । १३. वध - परीषह
मुनि ताड़ना को सहन करे । 'आत्मा शरीर से भिन्न है, आत्मा का नाश नहीं होता' - ऐसा विचार करे ।
जो मुनि शस्त्रास्त्रों से आहत होने पर भी द्वेष नहीं करता, परन्तु शरीर और आत्मा के पार्थक्य का चिन्तन करता है, जो ताड़ना तर्जना को अपने कर्मों का विपाक मानता है, जो यह सोचता है
आक्रुष्टोऽहं हतो नैव, हतो वा न द्विधाकृतः । मारितो न हृतो धर्मो, मदीयोऽनेन
बन्धुना ॥
इस व्यक्ति ने मुझे गाली दी है, पीटा तो नहीं, इसने मुझे पीटा है, मारा तो नहीं, इसने मुझे मारा है पर मेरा धर्म तो नहीं छीना, ऐसा चिन्तन करता हुआ, वह वधपरीषह पर विजय पा लेता है ।