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आगमों में विनय
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१. शुश्रूषणा-विनय-उपासना । २. अनाशातना-विनय-प्रतिकूल-व्यवहार नहीं करना। शुश्रूषा-विनय दस प्रकार का है१. अभ्युत्थान । २. आसनाभिग्रह-बड़ों का आसन लेकर साथ बैठ जाना। ३. आसन प्रदान–अतिथि को आसन देना। ४. सत्कार। ५. सम्मान। ६. कृतिकर्म-अभिवादन करना, वन्दन करना । ७. अंजलिप्रग्रह-हाथ जोड़ नमस्कार करना। ८. अतिथि के आने पर सामने जाकर सत्कार करना। ९. बैठे हुए की उपासना करना। १०. जाते हुए के साथ जाना।
अनाशातना-विनय यह अनाशातना-भक्ति-बहुमानं और वर्णसंज्वलनता के भेद से पैंतालीस प्रकार की है (१५४३=४५)। अनाशातना के पन्द्रह भेद
अरिहन्त देव की अनाशातना, अरिहन्त देव द्वारा प्रज्ञप्त धर्म की अनाशातना, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, कुल, गण, संघ, क्रिया (आस्तिक्य) संभोग, सधार्मिक की अनाशातना तथा आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यव-ज्ञान तथा केवलज्ञान की अनाशातना। इसी प्रकार भक्ति-बहुमान तथा वर्ण व संज्वलनता (यथार्थ गुणवर्णक) के भी पन्द्रह-पन्द्रह भेद होते हैं। ३. चारित्र-विनय
इसका अर्थ है जिस क्रिया के द्वारा कर्म-चय का नाश किया जाता है, उसे चारित्र-विनय कहते हैं।
यह पांच प्रकार का है