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उत्तराध्ययन और परीषह
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हो जाऊंगा अथवा वस्त्र मिलने पर फिर मैं सचेल हो जाऊंगा' - ऐसा न सोचे, दीन और हर्ष दोनों प्रकार का भाव न लाए।
श्वेताम्बर ग्रंथों में 'अचेल " परीषह का उल्लेख है और दिगम्बर ग्रंथों में 'नाग्न्य' परीषह का ।
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अचेल के दो अर्थ हैं—नाग्न्य और फटे हुए तथा अल्प मूल्य वाले वस्त्र। जिनकल्पिक मुनि नग्न रहते हैं और स्थविरकल्पिक मुनि फटे हुए या अल्प मूल्य वाले वस्त्र धारण करते हैं। मुनि अल्प मूल्य वाले, खंडित तथा मैले वस्त्र धारण करे । अपने मनोनुकूल वस्त्र न मिलने पर दीन न बने, 'कभी वैसे मिल जाएंगे' ऐसा विचार कर हर्षित भी न हो ।
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७. अरति - परीषह
मुनि संयम के प्रति उत्पन्न अधैर्य को सहन करे । विहार करते हुए या एक स्थान में रहते हुए अरति उत्पन्न हो जाए तो सम्यग् धर्म की आराधना से उसका निवारण करे ।
अरति का अर्थ है - संयम में अधृति । जो मुनि इन्द्रिय-विषयों के प्रति उदासीन रहता है, जो शून्यगृह, देवमन्दिर, वृक्ष- कोटर, कन्दरा आदि में रहता है, जो स्वाध्याय, ध्यान और भावना में रति करता है, जो सभी प्राणियों के प्रति कारुणिक होता है जो दृष्टश्रुत या अनुभूत भोगों का स्मरण नहीं करता, जो भोग कथाओं का श्रवण नहीं करता, वह अरतिपरीषह पर विजय पा लेता है ।
८. स्त्री - परीषह
मुनि स्त्रीसंबंधी परीषह को सहन करे । स्त्रियों के प्रति आसक्त न हो, ब्रह्मचारी के लिये स्त्रियां संग हैं, लेप हैं- ऐसा मान उनसे संयम जीवन का घात न होने दे। स्त्रियां अखंड ब्रह्मचर्य में बाधक हैं - ऐसा माने ।
जो मुनि स्त्रियों के भ्रूविलास, नेत्रविकार और श्रृंगार आदि को देखकर मन में विकार उत्पन्न होने नहीं देता, जो अपने मन को विक्षिप्त करने वाली स्त्रियों की चेष्टाओं का चिन्तन नहीं करता, जो कामबुद्धि से उन्हें नहीं देखता, १. प्रवचनसारोद्धार, गाथा ६८५ ।
२. तत्त्वार्थसूत्र ९ । ९ ।
३. प्रवचनसारोद्धार, वृत्तिपत्र १९३ ।