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आगम- सम्पादन की यात्रा
मानते हैं कि वहां वर्षावास बिताकर ) श्रावस्ती आए। गांव के बाहर एक उद्यान में ठहरे और वहां प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक भगवान् के पास आया और पूछा- आज मुझे क्या आहार मिलेगा ? भगवान् के मुख से ये शब्द सुनाई दिए - ' तुझे आज भिक्षा में मनुष्य का मांस मिलेगा ।' उसने कहा- 'आज मुझे जहां भिक्षा लेनी है, वहां मांस का अवकाश ही नहीं है, मनुष्य के मांस की तो बात ही दूर रही ।"
श्रावस्ती के पास हरिभद्रक नाम का गांव था, जहां एक अति विशाल हरिद्रक वृक्ष था । श्रावस्ती में आने-जाने वाले लोग यहां विश्राम के लिए ठहरते थे। बड़े-बड़े सार्थ यहां रात्रीवास करते थे ।
उस काल में श्रावस्ती में अनेक लोग भगवान् को नहीं मानते थे । वे 'स्कन्द-प्रतिमा' की पूजा-अर्चा करते थे । एक बार भगवान् 'आलभिका' नगरी से 'श्रावस्ती' आये । बहिर्भाग के एक उद्यान में ठहरे और 'प्रतिमा' में स्थित हो गए। लोगों ने उनकी भक्ति नहीं की । देवेन्द्र ने यह देख स्कन्द - प्रतिमा में प्रवेश कर भगवान् को वन्दना की। पश्चात् लोगों ने भी भगवान् की स्तुति की। हस्तिनापुर *
राजा चेति के पुत्रों ने हस्तिपुर बसाया था । हस्तिपुर ही आगे चलकर हस्तिनापुर हो गया । इसका दूसरा नाम 'नागपुर' था । ' वसुदेव हिण्डी में इसे 'ब्रह्मस्थल' कहा है। वर्तमान में यह स्थान मेरठ जिले में 'मवाने' के पास इसी नाम से प्रसिद्ध है। जैन सूत्रों के अनुसार यह 'कुरु' जनपद की राजधानी मानी जाती थी। जातक के अनुसार 'कुरु' की राजधानी यमुना के किनारे बसा हुआ कुरुमा इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) थी ।
एक बार गंगा में बाढ़ आ जाने के कारण हस्तिनापुर नष्ट हो गया था । तब राजा परीक्षित के उत्तराधिकारियों ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया । पाली - साहित्य में इसका नाम 'हत्थिपुर' या 'हत्थिनीपुर' आता है। आवश्यक, मलयगिरि वृत्ति पत्र २७९-८० ।
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२.
वही, पत्र २९३ ।
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६.
आव. मल. वृ. पत्र २९३ ।
उत्तराध्ययन १३ । १ ।
भारत के प्राचीन जैनतीर्थ, पृ. ४६ ।
बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय, पृ. ६, ७ ।