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आगम-सम्पादन की यात्रा पश्चिम है। धम्मपटकथा में लिखा है कि मच्छिकासंड 'सावत्थी' से तीस योजन (९० मील) दूर था। सावत्थी से राजगृह जाते हुए तीस योजन की दूरी पर 'आलवि' नगर था। कनिंघम ने इसकी पहचान उन्नाव जिले के 'बेवल' स्थान से की है और एन. एल. डे ने इटावा के पास आबिसा से।
कुषाणकाल (ई. १५-२३०) में भी श्रावस्ती उत्तरभारत का प्रमुख नगर था। धीरे-धीरे इसकी अवनति प्रारंभ हुई। पांचवीं शती के प्रारंभ में (५०४११) फाहियान जब भारत-भ्रमण के लिए आया था तब देखा कि नगर का ध्वंस हो चुका था। वहां केवल दो सौ परिवार रहते हैं। विहारों के स्थान पर नए मंदिर बन चुके हैं। उसने 'जेतवन विहार' को सात मंजिली इमारत कहा है और लिखा है कि अकस्मात् आग लग जाने के कारण वह नष्ट हो गया।
सातवीं सदी (६२९-४५) में हुएनसांग जब श्रावस्ती आया तब उसने इस नगर को बिलकुल उजड़ा हुआ पाया। वहां बौद्ध संघारामों की संख्या कई सौ थी, पर वे सभी निर्जन थे। देवमन्दिरों की संख्या सौ के आसपास थी। उसने भग्नावशेषों का उल्लेख किया है।
__ बारहवीं शताब्दी तक यहां बौद्ध भिक्षु रहते थे। उन्हें कन्नौज शासन का संरक्षण प्राप्त था।
. ई. १८६३ में जनरल कनिंघम ने सहेत-महेत के कुछ भाग की खुदाई कर कुछ तथ्य प्रगट किए। पश्चात् १८७६ में पुनः उत्खनन कार्य प्रारंभ हुआ। डॉ. हॉय ने १८७५-७६ में महेत की खुदाई का कार्य किया। उन्हें यहां जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं मिलीं। पुनः १८८४-८५ में उत्खनन हुआ। उसके फलस्वरूप उन्हें चौंतीस प्राचीन इमारतों के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए। भारत सरकार के पुरातत्त्वविभाग द्वारा पुनः १९०७-८ तथा १९१०-११ में खुदाई हुई। १. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ.८ । २. वही, पृ. ८। ३. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. २७२।
वही, पृ. २७२। ५. डब्ल्यू हॉय, 'सेत-महेत',-Journal of the royal asiatic society of
bangal -जिल्द ६१, भाग १ (१८९२), पृ. १-६९। Archiological Survey of India, Annual report 1907-08 p. 81 तथा आगे...