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आगम-सम्पादन की यात्रा साकेत, कौशाम्बी, विदिशा, गोनर्द, उज्जैनी तथा माहिष्मती आदि बड़े नगर थे। दूसरा बड़ा मार्ग श्रावस्ती से राजगृह तक जाता था। व्यापारी लोग श्रावस्ती से तराई में होते हुए वैशाली के उत्तर में पहुंचते थे। महात्मा बुद्ध ने अनेक वर्षावास यहां बिताये थे। आनन्द ने बुद्ध से अपने परिनिर्वाण के लिए चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी और वाराणसी-इन छह नगरों में से किसी एक को चुनने की प्रार्थना की थी। चुल्लवग्ग के दस परिच्छेदों में से चार का संग्रह यहीं हुआ था।
राईस डेविड्स ने बौद्ध-ग्रन्थों के आधार पर भारत के मुख्य स्थल-मार्गों का उल्लेख किया है। उसमें सर्वाधिक महत्त्व श्रावस्ती और कौशाम्बी नगर को प्राप्त था। जैसे१. उत्तर से दक्षिण-पश्चिम को
यह मार्ग श्रावस्ती से प्रतिष्ठानपुर (दक्षिण का एक नगर) को जाता था। इस मार्ग में प्रधानतः निम्नोक्त पड़ाव आते थे-प्रतिष्ठानपुर से चलकर माहिष्मती, उज्जैनी, गोनर्द, विदिशा, कौशाम्बी, साकेत होते हुए श्रावस्ती पहुंचते थे। २. उत्तर से दक्षिण-पूर्व को ___ यह मार्ग श्रावस्ती से राजगृह को जाता था। यह रास्ता सीधा नहीं था, अपितु श्रावस्ती से हिमालय के समीप-समीप होता हुआ वैशाली के उत्तर में हिमालय की उपत्यका में पहुंच वहां से दक्षिण की ओर मुड़ता था। इस रास्ते में कपिलवत्थु, कुशिनारा, पावा, हत्थिगाम, भण्डगाम, वैशाली, पाटलीपुत्र
और नालन्दा आदि नगर आते थे। यहां संभवतः पैंतालीस योजन लम्बा रास्ता था। ३. पूर्व से पश्चिम
यह मार्ग गंगा और यमुना के साथ-साथ चलता था। गंगा नदी में 'सहजाती' नामक नगर तक तथा यमुना में कौशाम्बी तक जहाज आया-जाया १. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. २३। २. दीघनिकाय २, पृ. १४६,१६९ । ३. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. १७१। ४. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. १३१ ।