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उत्तराध्ययनगत देश, नगर और ग्रामों का परिचय
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करते थे। इस मार्ग पर कौशाम्बी का अत्यन्त महत्त्व था। जहाज से सारा माल यहां उतारा जाता था और फिर उसे गाड़ियों से लादकर उत्तर या दक्षिण में पहुंचाया जाता था।
फाहियान साकेत से श्रावस्ती गया था। उस समय यहां बस्ती बहुत कम थी।
विष्णुपुराण के अनुसार सूर्यवंशी राजा श्रवस्त या श्रावस्तक के द्वारा इसकी स्थापना हुई। पाली टीकाओं में इस नगर का व्युत्पत्तिक अर्थ करते हुए लिखा है कि-'जहां मनुष्य के उपभोग-परिभोग के लिए सब कुछ उपलब्ध होता हो उसे 'सावत्थी' कहते हैं।' 'क्या वह भाण्ड है?' ऐसा पूछे जाने पर 'सव्वं अत्थी' सब कुछ है-ऐसा कहा जाता था, अतः इस नगर को 'सावत्थी' कहा गया।
श्रावस्ती का ही बिगड़ा हुआ रूप 'सहेत' है। उत्तरभारत के छह प्रमुख नगरों में इसकी गणना थी। यह प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारण
औद्योगिक नगरों में प्रमुख था। आयात-निर्यात का यह प्रमुख केन्द्र था। सुदत्त महासेटूि (अनाथपिंडिक) ने श्रावस्ती नगरी के दक्षिण, एक मील दूर, राजकुमार जेत के उद्यान को बहुत बड़े मूल्य में लेकर महात्मा बुद्ध के निवास के लिए एक विहार का निर्माण कराया। उसे 'जेतवन विहार' कहा गया। महात्मा बुद्ध यहां पचीस वर्ष तक रहे। यहां हजारों भिक्षु रहते थे। अधिकांश जातक कथाएं महात्मा बुद्ध ने यहां के दीर्घ निवास काल में कही थी।
श्रावस्ती से तीस योजन पर संकस्स (सांकाश्य) नगर था। इस नगर की पहिचान 'संकिसा' से की गई है, जो फर्रुखाबाद जिले में एक छोटा गांव है। यह फतेहगढ़ से तेईस मील पश्चिम और कन्नौज से पैंतालीस मील उत्तर१. भारतीय संस्कृति, पृ. १९१,९२ २. अध्याय २, अंश ४।
पपंचसूदनी १ पृ ५९-यं किं च मनुस्सानं उपभोग-परिभोगं सव्वं एत्थ अत्थीति-सावत्थी। सत्थ समायोगे च 'किं भण्डं अत्थीति' पुच्छिते 'सव्वं अत्थीति' वचनमुपादाय सावत्थी।
यहां एक महाश्रेष्ठी सुदत्त रहता था। उसी के नाम पर इसका नाम 'सहेत' हुआ, __ ऐसी अनुश्रुति है। ५. छह नगर-चम्पा, राजगृह, साकेत, कौशाम्बी, श्रावस्ती तथा वाराणसी।