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आगम-सम्पादन की यात्रा आठवें गणधर अकंपित की यह जन्म-भूमि थी। चौथे निह्नव अश्वमित्र ने वीर निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् ‘सामुच्छेदिकवाद' का प्रवर्तन यहीं से किया था। दशपूर्वधर आर्य महागिरि ने यहां विहार किया था। ईसवी सन् के पूर्व 'मिथिला' जैन धर्म के प्रसार-प्रचार का प्रमुख केन्द्र था। भगवान् महावीर ने दसवां चतुर्मास श्रावस्ती में बिताया। वहां से विहार कर मिथिला होते हुए वैशाली पहुंचे और वहां ग्यारहवां चतुर्मास किया था। कई यह भी मानते हैं कि भगवान् ने ग्यारहवां चतुर्मास मिथिला में किया था।
ठाणं सूत्र (१०।२७) में दस राजधानियों का नामोल्लेख हुआ है, उसमें मिथिला भी एक है।
जगदीशचन्द्र जैन ने मिथिला का वर्णन करते हए लिखा है-'किसी समय मिथिला प्राचीन सभ्यता तथा विद्या का केन्द्र था। ईसवी सन् की नौंवी सदी में यहां प्रसिद्ध विद्वान् मंडन मिश्र निवास करते थे।.....यह नगरी प्रसिद्ध नैयायिक वाचस्पति मिश्र की जन्मभूमि थी तथा मैथिल कवि विद्यापति यहां के राजदरबार में रहते थे। नेपाल की सीमा पर 'जनकपुर' को प्राचीन ‘मथुरा' माना जाता है।
बौद्ध-ग्रन्थों के अनुसार विदेह की राजधानी वैशाली थी। यह मध्यप्रदेश का एक प्रधान नगर था।
आवश्यकनियुक्ति के अनुसार उस समय मिथिला में राजा 'जनक' राज्य करते थे। सावत्थी-श्रावस्ती
कनिंघम ने इसकी पहचान सहेत-महेत से की है, जो कि गोंडा और बहराइच जिलों की सीमा के पास राप्ती नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान १. आवश्यकनियुक्ति गा. ६४४। २. आवश्यकभाष्य गा. १३१।
आवश्यकनियुक्ति, गा. ७८२। चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्य, मिथिला, कौशाम्बी, राजगृह। भारत के प्राचीन जैनतीर्थ, पृ. २८ । गाथा ५१६-'मिहिला जणओ य।'....... उत्तराध्ययन, २३।३। Political History of Ancient India, p. 100.