________________
१२८
आगम- सम्पादन की यात्रा
जातकों में बनारस के साथ बहुत से नगरों और देशों के व्यापार का उल्लेख प्राप्त होता है । कम्बोज, कांपिल्य, कपिलवस्तु, कोशल, कौशाम्बी, मिथिला, मथुरा, पांचाल, सिन्ध, उज्जैन, विदेह आदि के साथ बनारस का व्यापारिक संबंध सूचित करता है। सुदूर प्रदेश 'बेबिलोनिया' के साथ भी उसका व्यापार होता था । इसका उल्लेख 'बावेस' जातक में मिलता है । उस समय राजा ब्रह्मदत्त बनारस में राज्य करता था । कुछ व्यापारी 'बावेस' (बेबीलोन) देश में व्यापारार्थ गए । वे अपने साथ एक 'कौआ' भी ले गए थे। उस देश में कोई भी पक्षी नहीं होता था । जब लोगों ने कौए को देखा तो उस उड़ने वाले विचित्र पक्षी को उन्होंने सौ मुद्राओं में खरीद लिया। दूसरी बार वे व्यापारी अपने साथ 'मोर' ले गए। उस पक्षी को देख बावेसवासियों को अत्यन्त आश्चर्य हुआ । एक सहस्र मुद्राओं में उन्होंने उसे खरीद लिया ।
बनारस नगर भारत के विशिष्ट व्यवसायी नगरों में से एक था। भारत के बड़े-बड़े नगरों से यह सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ था। यहां अनेक श्रेष्ठी रहते थे। 'यश' यहां का प्रसिद्ध श्रेष्ठी था, जो कि आगे चलकर बुद्ध का छठा शिष्य बन गया । भारत में चम्पा और बनारस अच्छे बन्दरगाह माने जाते थे । बनारस से नदी के रास्ते से लोग दूर-दूर तक जाते थे। यहां से (नदी के मार्ग से) वत्स या वंश प्रदेश तीस योजन दूर था ।
श्रावस्ती और बनारस बुद्ध के प्रमुख शिष्यों के अत्यन्त प्रिय स्थान थे । बुद्ध के पांच साथी तपस्वियों ने बनारस से छह मील दूर ऋषिपत्तन को अपना निवासस्थान चुना था । बनारस के निकट 'खेमियंब वन' नाम का एक विशाल आम्रवन था ।' बुद्ध ने भिक्षुओं को दीक्षा देने का कार्य बनारस - ऋषिपत्तन में अपने पांच पुराने ब्राह्मण मित्रों से आरम्भ किया था, अतः बनारस बौद्ध-दीक्षा का आदि-स्थल माना जाने लगा। यहां 'पातिमोक्ख सुत्त' के कतिपय नियमों का निर्माण हुआ, ऐसा माना जाता है । 'पातिमोक्ख' के २२७ नियमों में अधिकांशतः सावत्थी में और कुछ बनारस, कोसंबी तथा कपिलवत्थु में बनाए गए थे । २
'महापरिनिव्वान सुत्तान्त' में बनारस के महीन कपड़ों की बहुत प्रशंसा की
१. उत्तरप्रदेश में बौद्धधर्म का विकास, पृ. ३ ।
२.
वही, पृ. १७२-१७३ ।