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आगम-सम्पादन की यात्रा ३०. उत्तराध्ययनगत देश, नगर और ग्रामों का परिचय ___ साहित्य दर्पण है। उसमें तात्कालिक तथ्यों का विशद प्रतिबिम्ब मिलता है। संस्कृति, सभ्यता, परम्पराएं, ऐतिहासिक तथ्य, जीवन-दर्शन, विचारक्रांति, साधना-पद्धति आदि-आदि विषयों के साथ देश, ग्राम, नगर आदि की भोगौलिक स्थितियां तथा उनके परिवर्तन-परिवर्द्धन, उत्कर्ष-अपकर्ष आदि का भी विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है।
जैन-साहित्य इन सभी दृष्टियों से संपन्न है। जैन-आगम साहित्य बहुत प्राचीन है। वह सभी वर्णनों का मूल उत्स है। उसमें प्रतिपादित तथ्यों की समीक्षा तथा समालोचना प्रस्तुत करते हुए उत्तरवर्ती आचार्यों ने उन तथ्यों का विस्तार किया है और अपने समय के तथ्यों का उनमें उल्लेख कर परम्परा के सातत्य को अक्षुण्ण रखा है। आगमों का व्याख्यात्मक-साहित्य इसका प्रमाण है। आज भी उपलब्ध चूर्णियों में जो तथ्य उपलब्ध होते हैं वे भारत के इतिहास का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करते हैं। महापंडित राहलसांकृत्यायन ने 'बौद्धकालीन भारत' ग्रन्थ का निर्माण कर भारत के भौगोलिक, सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन का खाका प्रस्तुत किया है। यह प्रयास स्तुत्य है और इससे भारतीय इतिहास को समझने-बूझने का अवसर मिला है।
इतने वर्षों तक जैन-ग्रन्थ उपेक्षित से रहे, परन्तु आज उनकी ओर विद्वानों का ध्यान गया है और यह माना जाने लगा है कि प्राचीन जैन-साहित्य की उपेक्षा कर भारतीय इतिहास को सर्वांगपूर्ण नहीं बनाया जा सकता। अनेक विद्वान् इस
ओर कार्यशील हैं और प्रतिदिन जैन-परम्परा के नए-नए तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं। आचार्यश्री तुलसी भी इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। उनके निर्देशन में प्रस्तूयमान आगम-कार्य इसी प्रयत्न का पूरक अंश है । 'आगम-कालीन सभ्यता
और संस्कृति' तथा 'आगमकालीन भारत'-इन दो विषयों पर बृहद् ग्रन्थ निर्माण की ज्वलंत आवश्यकता आज महसूस हो रही है। संभव है आचार्यश्री की उद्यमपरता से इन ग्रन्थों का निर्माण निकट भविष्य में हो जाए।
प्रस्तुत निबन्ध भी 'आगम कालीन भारत' के एक अंश की पूर्तिमात्र है। इस निबन्ध में उत्तराध्ययन सूत्र में उल्लिखित ग्राम, नगर, देश आदि की भोगौलिक स्थिति तथा वर्तमान में उनकी संभावित अवस्थिति पर प्रकाश डालने का प्रयासमात्र है।