Book Title: Agam Sampadan Ki Yatra
Author(s): Dulahrajmuni, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 131
________________ ११८ आगम-सम्पादन की यात्रा ___ इसे उस समय की दिव्यभाषा माना है। यह प्राकृत का ही एक रूप है। प्राकृत को स्वाभाविक और संस्कृत को विकृत 'आगन्तुक' भाषा माना जाता था। यह मगध के एक भाग में बोली जाती थी, इसलिए अर्धमागधी कहलाई। इसमें मागधी और दूसरी अट्ठारह भाषाओं के लक्षण मिश्रित हैं, इसलिए भी इसे अर्धमागधी कहा गया। इसमें देश्य शब्दों की बहुलता है। यह इसलिए कि विभिन्न जाति, देश और कुल के व्यक्ति भगवान् महावीर के तीर्थ में प्रव्रजित हुए। अतः उनकी भाषाओं का मिश्रण स्वाभाविक था। मागधी और देश्य शब्दों का मिश्रण अर्धमागधी है। इसे आर्ष या आर्य भी कहा जाता है। ___भाषा की दृष्टि से आगमों को दो युगों में विभक्त किया जा सकता है-ई. पूर्व चार सौ से ई. सौ तक का पहला युग है। इसमें रचित अंगों की भाषा अर्धमागधी है। दूसरा युग ई. सौ से ई. पांच सौ तक का है। इसमें रचित या निर्मूढ आगमों की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है। २९. उत्तराध्ययन के तीन टीकाकार वैशाख शुक्ला पंचमी को उत्तराध्ययन सूत्र का कार्य प्रारम्भ हुआ। दशवैकालिक सूत्र के पश्चात् आचारांग का कार्य हमें लेना चाहिए था, क्योंकि ये दोनों सूत्र संबंधित हैं। दशवैकालिक सूत्र में वर्णित साध्वाचार का विस्तार हमें आचारांग में उपलब्ध होता है। अतः दोनों परस्परापेक्षी हैं। दूसरी बात यह है कि दशवैकालिक सूत्र के बृहत्तर कार्यकाल में आचारांग सूत्र के कई स्थलों १. देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति, भगवती ५।९३ । २. जैन दर्शन : मनन और मीमांसा, पृ. ६१। ३. तित्थगरेहिं वइजोगेण पभासितेहे गणधरेहिं वइजोगेण चेव सुत्तीकतं, तं पुण गहि....पागत भासीए ससभागुणः वैकृतस्तु भाषा आगन्तुक इत्यर्थः, चू. पृ. ७। ४. मगदद्धविसयभासाणिबद्धं अद्धमागह-निशीथचूर्णि। ५. अट्ठारसदेसीभासाणिमयं वा अद्धमागह-निशीथचूर्णि। (क) सक्कता पागता चेव, दोण्णि य भणिति आहिया। सरमंडलंमि गिज्जंते, पसत्था इसिभासिता। (ठाणं ७।४८।१०) (ख) प्राकृतव्याकरण, हेम. ८।१।३।

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