________________
१०८
आगम-सम्पादन की यात्रा वाचक है-अन्तरीय वस्त्र और उत्तरीय वस्त्र। इसका दूसरा अर्थ है-'सान्तर'-सूत का कपड़ा तथा 'उत्तर'-ऊन का कपड़ा। जो त्रिवस्त्रधारी भिक्षु है, वह हेमन्त के अतिक्रान्त होने पर, ग्रीष्म के आने पर जीर्ण वस्त्रों का परिष्ठापन कर दे। यदि सारे वस्त्र जीर्ण न हुए हों तो जो जीर्ण हो गए हैं, उन्हें छोड़ दे और स्वयं निस्संग होकर विहरण करे। यदि शिशिर के अतिक्रान्त होने पर भी क्षेत्र, काल या अन्य प्राकृतिक कारणों से पुनः शीत के प्रकोप की आशंका हो तो वह 'सान्तरुत्तर' हो जाए। अर्थात् वह एक वस्त्र ओढ़े और एक पास में रख दे। यह टीकाकार का अभिमत है। चूर्णिकार ने दोनों कपड़ों को काम में लेने की बात 'सान्तरुत्तर' में गृहीत की है।
उत्तराध्ययन के 'केशिगोयमीय' अध्ययन में अचेल और ‘सान्तरुत्तर' धर्म की चर्चा हुई है। जब पार्श्व और महावीर की परम्परा के निर्ग्रन्थ एक-दूसरे को देखते हैं, तब उनके मन में यह विचिकित्सा उत्पन्न होती है। ___ भगवान् महावीर के शिष्य सोचते हैं हमारा धर्म अचेल है और इन पार्श्व के श्रमणों का धर्म सान्तरुत्तर है। एक ही लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रवृत्त दोनों के धर्म में इतना अन्तर क्यों है?
कल्पसूत्र, चूर्णिकार और टिप्पणकार 'अन्तर' शब्द के तीन अर्थ करते हैं-सूतीवस्त्र, रजोहरण और पात्र तथा उत्तर' शब्द के दो अर्थ होते हैं कम्बल और ऊपर ओढ़ने का उत्तरीय वस्त्र ।
प्राचीन काल में वर्षा के समय भीतर सूती कपड़ा और ऊपर ऊनी वस्त्र ओढ़कर बाहर जाने की परम्परा रही है। यह परम्परा अत्यन्त पुष्ट थी और आज भी यह कुछ प्रकारान्तर से मूर्तिपूजकों में प्रचलित है।
'सान्तरुत्तर' शब्द के चार अर्थ प्राप्त होते हैं
१. उत्तराध्ययन बृहवृत्ति के अनुसार श्वेत और अल्पमूल्य वस्त्र का निरूपण करने वाला धर्म सान्तरुत्तर है।
२. आचारांगवृत्ति के अनुसार, हेमन्त के अनुसार एक वस्त्र को ओढ़ने तथा एक को पास में रखने की आज्ञा देने वाला धर्म।
३. आचारांगचूर्णि के अनुसार हेमन्त के व्युत्सर्ग जाने पर भी शील की आशंका से दो वस्त्र रखने की अनुमति देने वाला धर्म । १. उत्तराध्ययन, 'अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो'-(२३ ॥१३)।