________________
आगमकालीन सभ्यता और संस्कृति
११५ आगम भी सूत्र का पर्याय है। आगम का अर्थ है जो तत्त्व आचारपरम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम है।
इस प्रकार आगम-शब्द समग्र श्रुत-ज्ञान का परिचायक है। परन्तु जैन धार्मिक ग्रन्थों को जो 'आगम' संज्ञा प्राप्त है, वह कुछ विशेष ग्रन्थों के लिए ही है।
'गणिपिटक' शब्द द्वादश अंगों के लिए प्रयुक्त होता है। जैन सूत्रों में स्थान-स्थान पर 'दुवालसंग' 'गणिपिडगं' ऐसा उल्लेख आता है।
प्रायः यह बारह अंगों का समुदयवाची शब्द है, परन्तु कहीं-कहीं इसे एक अंग का वाचक भी माना है।
इसका शाब्दिक अर्थ है-गणी, आचार्यपिटक, सर्वस्व। आचार्य का सर्वस्व।
सर्वसाधारण में जैन-आगमों के लिए सूत्र संज्ञा प्रचलित है। इसका कारण है कि आगम बहुलांश में सूत्र की परिपाटी में लिये गये है। अतः रचना के आधार पर उन्हें सूत्र कह दिया गया। आगम-व्यवस्था
आगम के दो मुख्य भेद हैं-अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य अथवा अनंगप्रविष्ट। ये विभाग प्राचीनतम हैं। गणधर भगवान् महावीर को प्रश्न पूछते
-समवाय
१. 'आगच्छत्याचार्यपरम्परया वासनाद्वारेणेत्यागमः।'
-सिद्धसेनगणिकृतभाष्यानुसारिणी टीका, पृ. ८९। २. समवायांग, प्र. ८८,१३२,१३४। ३. तिण्हं गणिपिडगाणं आचारचूलियावज्जाणं सत्तावण्णं अज्झयणा पण्णत्ता तं जहा-आयारे, सूयगडे ठाणे....।
१७।१। 'गणिपिटकं-गुणगणोऽस्यास्तीति गणी-आचार्यस्तस्य पिटकं सर्वस्वं गणिपिटकम्'-अनुयोगद्वार सूत्र, ४२, मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृतबृहवृत्तिपत्र, २८८। नंदीसूत्र ४४। देखो-विशेषावश्यकभाष्य पर मलधारीहेमचन्द्रसूरिकृत बृहवृत्ति, पत्र-२८८॥