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दक्षिण यात्रा और आगम-सम्पादन में, अनेक-अनेक साहित्यिक प्रवृत्तियां प्रारम्भ होंगी जिनसे हमारे शासन की बहुत प्रभावना होगी।'
___ सायं के चार बजे थे। आचार्यश्री के पास 'निशीथ' का वाचन प्रारंभ हुआ। अध्ययनार्थी साधु-साध्वी वाचन में सम्मिलित हुए। प्रतिदिन लगभग एक घण्टे तक यह वाचन चलता है और साथ-साथ अनेक तथ्य प्रकाश में आते जाते हैं। उदाहरण के लिए निशीथ के बीसवें उद्देशक के अनेक सूत्र ऐसे हैं जिनका हार्द मूल से स्पष्ट नहीं होता। भाष्य-चूर्णि के पढ़ने से इनका हार्द स्पष्ट हुआ और यह बात ध्यान में आयी कि कहीं-कहीं ग्रन्थकार ने अनेक सूत्रों को एक ही सूत्र में समाहित कर दिया (देखो-सूत्र १३,१४)।
_ आचार्यश्री ने कहा-'निशीथ सूत्र के वाचन का मेरा अभिप्राय यही था कि जो तत्त्व मूल सूत्र से स्पष्ट नहीं होते वे भाष्य-चूर्णि के वाचन से बहुत स्पष्ट हो जाते हैं और इससे मूल-पाठ के निर्धारण में सहायता मिलती है। जो यहां सुनते हैं, उनके लिए वाचन का अभिप्राय कुछ और हो सकता है, जैसे-ऐतिहासिक तथ्यों का ज्ञान, भाष्य, चूर्णिगत अनेक-अनेक तथ्यों की जानकारी आदि-आदि।
___ पाठ-निर्धारण करते समय इस प्रकार की अनेक प्रक्रियाएं काम में ली जाती हैं।
प्रतिदिन दोनों समय विहार होते हैं, परन्तु आगम-कार्य इसी उत्साह व वेग से आगे चलता जाता है। विभिन्न मुनि भिन्न-भिन्न कार्यों में लगे हुए हैं और कार्य अपनी गति से चल रहा है।
यात्रा के दौरान वर्तमान में निम्न कार्य चल रहा है१. औपपातिक सूत्र का पाठ-निर्धारण ।
२. समवायांग सूत्र के अनुवाद, संस्कृत-छाया तथा पाठ का पुनः अवलोकन तथा उनके अंतिम रूप का निर्धारण।
३. आचारांग सूत्र का शब्दानुक्रम।
४. 'उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन' का पुनः अवलोकन तथा अंतिम रूप का निर्धारण।
५. दशवैकालिक तथा उत्तराध्ययन नियुक्ति का अनुवाद । ६. नन्दी सूत्र की भूमिका।